नियम सिर्फ नाम के, हकीकत शून्य पर सवार:: सड़क सुरक्षा के दावों की परतें खोलता सच

भीलवाड़ा। सड़क सुरक्षा को लेकर सरकारें आए दिन नियम बनाती हैं, अभियान चलाती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि सड़क पर व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं बची। ट्रैफिक कानूनों से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस और ओवरलोड वाहनों तक हर व्यवस्था सिर्फ कागजों में सिमटी है। नियमों की किताबें सजी हैं, लेकिन सड़क पर अमल शून्य पर सवार है।सड़को पर दुकाने चल रही हे बिच सड़के पार्किग हो रही हेरंग साइड पर वाहन दौड़ाये जा रहे हे बिच सड़के चेकिंग के नाम पर कर्मचारी शहीद हो रहे हे नियमो को ताक में रखे कर . वाहनों का हुलिया और डिजाइन बदली जा रही हे कोण नहीं देखता पर देखे कर कार्यवाही नहीं करना ही मोत को दावत दे रहा हे
बिना टेस्ट के जारी हो रहे ड्राइविंग लाइसेंस
नियम के अनुसार हल्के वाहन चलाने के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष और भारी वाहन के लिए 20 वर्ष तय है। लर्निंग लाइसेंस के बाद छह महीने में स्थायी लाइसेंस जारी किया जाना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि प्रदेश में 13 ट्रेक लंबे समय से बंद हैं और बिना किसी ड्राइविंग टेस्ट के लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं। भारी वाहनों के लाइसेंस के लिए फर्जी प्रशिक्षण प्रमाणपत्र खुलेआम बिक रहे हैं।
रफ्तार पर लगाम लगाने के साधन ही नहीं
गतिसीमा से अधिक गति पर जुर्माना और लाइसेंस रद्द करने का प्रावधान है। लेकिन चालान करने के उपकरण ही नहीं हैं। कई मामलों में ओवरस्पीड पर चालान नहीं बन पाता। तीन महीने निलंबन के बाद लाइसेंस बहाल कर दिए जाते हैं।
चेकिंग सिस्टम ठप, ऑफलाइन चालान जारी
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 136(ए) के तहत इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटरिंग सिस्टम की व्यवस्था की गई है, परंतु अधिकांश चालान अब भी ऑफलाइन बनते हैं। सड़क पर रीयल टाइम निगरानी का कोई सिस्टम नहीं है। न तो सीसीटीवी से मॉनिटरिंग होती है, न ही डेटा विश्लेषण के लिए कोई ठोस व्यवस्था।
शराब पीकर वाहन चलाने पर भी कार्रवाई नहीं
एमवी एक्ट की धारा 185 के अनुसार शराब पीकर वाहन चलाने पर चालक और वाहन मालिक दोनों जिम्मेदार हैं। लेकिन परिवहन विभाग के पास ब्रेथ एनालाइजर ही नहीं हैं। नतीजा यह कि अब तक एक भी चालान नहीं बनाया गया। विभागीय लापरवाही के चलते यह प्रावधान महज औपचारिकता बनकर रह गया है।
ओवरलोड वाहनों पर आधा जुर्माना, पूरा फायदा
नियमों के अनुसार बसों पर परमिट निलंबन और ट्रकों पर 20 हजार रुपये या प्रति टन दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाना चाहिए। मगर हकीकत में बसों पर सिर्फ 10 हजार और ट्रकों पर मात्र एक हजार प्रति टन जुर्माना लिया जा रहा है। यह ढील ओवरलोडिंग को बढ़ावा दे रही है और हादसों की वजह बन रही है।
प्रशिक्षण सर्टिफिकेट बने कारोबार
भारी वाहनों के चालकों के लाइसेंस नवीनीकरण से पहले दो दिन की ट्रेनिंग अनिवार्य है। लेकिन अब यह प्रक्रिया पूरी तरह कारोबार बन चुकी है। हजारों रुपये लेकर प्रशिक्षण सर्टिफिकेट बेचे जा रहे हैं, बिना किसी क्लास या टेस्ट के।
सड़कों पर अतिक्रमण और अव्यवस्था
नियमों के मुताबिक राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों ओर 40 मीटर तक कोई व्यावसायिक निर्माण नहीं होना चाहिए। लेकिन हर कुछ किलोमीटर पर ढाबे, होटल और ऑटोमोबाइल वर्कशॉप सड़क के बिल्कुल पास नजर आते हैं। आने-जाने की अलग लेन का प्रावधान भी सिर्फ बोर्डों पर ही है।
रोड इंजीनियरिंग की निगरानी भी अधूरी
परिवहन विभाग, पुलिस और एनएचएआई को मिलकर नियमित रोड सेफ्टी ऑडिट और ब्लैक स्पॉट चिन्हित करने चाहिए, लेकिन यह प्रक्रिया अधूरी है। बजट समय पर जारी नहीं होता और मॉनिटरिंग भी ढीली रहती है। नतीजा— हादसे बढ़ते जा रहे हैं और जिम्मेदारी हवा में उड़ रही है।
सड़क सुरक्षा पर बने नियमों और असल अमल के बीच की खाई अब खतरनाक होती जा रही है। सवाल यह है कि जब लाइसेंस से लेकर चालान और मॉनिटरिंग तक सबकुछ फाइलों में सिमट गया है, तो सड़क पर आम आदमी की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?
