गांधी सागर पर करोड़ों रुपए फूंके क्यों?: शहर का सबसे गंदा सागर, पर्यटन नहीं अय्याशियों के लिए हो रहा फेमस

शहर का सबसे गंदा सागर, पर्यटन नहीं अय्याशियों के लिए हो रहा फेमस
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सुकून के लिए नहीं, अब लाशें मिलने से चर्चित है तालाब

भीलवाड़ा। अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की लापरवाही का शिकार गांधी सागर अब शहर का सबसे गंदा सागर होने का तमगा हासिल कर चुका है। अफसरों, ठेकेदारों और नेताओं की उदासीन रवेये से शहर में स्थित नेहरू तलाई, मानसरोवर झील से भी ज्यादा दयनीय स्थिति में गांधी सागर तालाब को पहुंचा दिया है। जो झाड़ियां और अव्यवस्था फ्री में उपलब्ध हो जाती है, उसके लिए विकास के नाम पर लाखों रुपए फूंक दिए गए। हालात इस कदर खराब है कि सबसे सुंदर रमणीय स्थल बनाने के की घोषणाएं होने और उस पर लाखों खर्च करने के बावजूद शहरवासी गांधी सागर तालाब की तरफ घूमना तो दूर उस तरफ देखने से भी परहेज कर रहे हैं। गलती से कोई चले भी जाए तो उन्हें यहां ना दो पल का सुकून है, ना आराम। शहरवासी बिना समय गवाएं तालाब से वापस आ रहे है।

शहर के गांधी सागर तालाब के हालात वर्षों बाद भी नहीं बदले हैं। आसपास के आबादी क्षेत्र में इसकी बदबू लोगों की परेशानी बनी है। यहां नियमित सफाई हो पाई और ही पुख्ता समाधान के लिए कोई विशेष प्रयास किए गए। एक समय में गांधीसागर तालाब का पर्यटन और पौराणिक रूप महत्व रखता था, लेकिन अब इसकी पहचान और स्वरूप लापरवाही के चलते बिगड़ चुका है। जहां पहले सुबह-शाम रौनक थी, वहां अब सन्नाटा पसरा रहता है। यह जगह पिकनिक की बजाए अब नशेडिय़ों और जुआरियों का स्पॉट बन चुकी है। गंदगी के अभाव में यहां आने तक की कोई नहीं सोचता है। गलती से यदि कोई चले भी जाए तो यहां की हालात और बदबूदार वातावरण को देखते हुए कुछ ही मिनटों में उसे गांधीसागर से रवाना पड़ रहा है। हालांकि नगर परिषद ने एनजीटी में शपथपत्र दे रखा है कि अब नालों का पानी इसमें नहीं डाला जाएगा। लेकिन हालात जस के तस है।

फुटपाथ पर अतिक्रमण, अस्थाई घरो की भरमार

गांधी सागर तालाब किराने बड़ला चौराहे से शुरू हुआ अतिक्रमण हरणी महादेव रोड तक फैला हुआ। घूमने के उद्देश्य से बनाई गई फुटपाथ पर अतिक्रमियों का कब्जा है। बड़ले के पास की स्थिति तो यह है कि यहां व्याप्त अतिक्रमण के चलते जाम तक लग जाता है। थेले थडिय़ों से एक कदम आगे बढते हुए कुछ बाहरी लोगों ने तो यहां अस्थाई बसेरा तक बना लिया है। वे दिन रात यहीं रहते हैं, हैरानी की बात है कि यहां रहने वाले अतिक्रमी शौच आदि के लिए तालाब का इस्तेमाल करते हैं। तालाब किनारे लगी बाउंड्री की रेलिंग तो असामाजिक पहले ही चोरी कर बेच चुके हैं।


अय्याशियों का अड्डा बना आईलैंड

हरणी महादेव रोड पर आईलैंड तक जाने के लिए एक सीमेंटेड गेट बनाया गया है। इस गेट से आईलैंड तक जाने पर बदहाली की पूरी कहानी बयां हो जाती है। यहां फुटपाथ पर रह रहे बाहरी लोग इसी जगह को शौच आदि के लिए इस्तेमाल करते हैं। पूरे रास्ते में झाडिय़ां उगी है। आगे जाकर तालाब के बीच बना टापू केवल नाममात्र का है। ऐसा प्रतित होता है कि इस टापू के कारण तो गांधी सागर के भराव क्षेत्र में और कमी आ गई है। बदहाली ऐसी है कि शब्दों में बयान तक करना मुश्किल है। यहां दिन रात असामाजिक तत्वों का डेरा रहता है। शराबी, जुआरी, स्मैकचियों की पसंदीदा जगह होने के साथ ही कुछ लोगों ने बताया कि यहां कुछ लोग अन्य अनैतिक काम के लिए भी बिना डरे चले जाते हैं।

तालाब में आता है शहर के सीवरेज नालों का गंदा पानी

शहर के सबसे प्राचीन गांधी सागर तालाब में सीवरेज नालों का गंदा पानी आ रहा है। इसमें बहकर आई गंदगी पॉलीथिन, मरे हुए पशुओं के अवशेष तालाब के पानी को प्रदूषित करने के साथ ही जलीय जीवों और आम लोगों के लिए भी परेशानी का सबब बने हुए है। तालाब के विकास पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाने का दावा करने वाली पूर्व नगर परिषद और वर्तमान में नगर निगम के अफसर इस आंखें मूंदे बैठे है। इन हालातों में सफाई करवाकर नौका विहार करवाने की योजना के जमीन पर उतरने की बात सोचना भी बेमानी होगा। इतना ही नहीं प्रदूषण मंडल ने तत्कालीन नगर परिषद पर तीन करोड़ से ज्यादा का जुर्माना भी लगाया था, लेकिन अब भी हालात नहीं सुधरे।



कितने अफसर आए और गए, नहीं बदली सूरत

शहर में जो नया अफसर आता है, वो इस तालाब का दौरा करने के दौरान इसकी हालत में सुधार करवाने का दावा करता है। संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों को निर्देश भी दिए जाते हैं। लेकिन उन आदेशों की पालना नहीं हो पाती है। जो अव्यवस्था फैली है, उसे समेटने के बजाए और उस पर रुपए बर्बाद करने की तैयारी शुरू कर दी जा रही है। फाउंटेन लगाने और टापू पर झाड़ियां उगी है।


फतेह सागर नहीं, पुराने स्वरूप में ही सुधार कर दो

परिषद ने तालाब को उदयपुर की फतहसागर झील की तर्ज पर विकसित करने का दावा किया था। हकीकत यह है कि गंदे नाले सरीखा दिखाई देता है। चारों तरफ गंदगी फैली है। तालाब से निकलने वाले गंदा पानी की निकासी के स्थान पर हजारों टन प्लास्टिक थैलिया भरी पड़ी है। बंधे में भी गंदा पानी भरा पड़ा है। तालाब में आसपास की कॉलोनियों का गंदा पानी आ रहा है। इसे रोकने के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।

करोड़ों खर्च, फिर भी नहीं बदले हालात

पहले नगर परिषद की हर बोर्ड बैठक में सौन्दर्य पर करोड़ों रुपए खर्च करने के प्रस्ताव लिए गए। गांधीसागर तालाब का सौन्दर्यकरण तो नहीं हुआ लेकिन इसके नाम पर जनप्रतिनिधियों और अफसरों ने अपनी जेबें जरूर भरी। 1995 से लेकर अब तक 8 करोड़ से अधिक की राशि गांधी सागर के सौंदर्यकरण पर खर्च की जा चुकी। इसके बावजूद हर बार और खर्च करने की तैयारी कर ली जाती है। यह राशि तालाब की सफाई, आईलैंड का विकास, फाउंटेन व सौंदर्यीकरण के नाम पर बताई जाती है। लेकिन तालाब में नालों का गंदा पानी से आने से नहीं रोका जा सका है। एनजीटी भी इसे लेकर कई बार निर्देश दे चुका है लेकिन परिषद ने कोई परवाह नहीं दिखाई।

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