गरीब बच्चों को बैग-वर्दी से वंचित कर सरकार ने फिर दिखाई जातिवादी मानसिकता!

गरीब बच्चों को बैग-वर्दी से वंचित कर सरकार ने फिर दिखाई जातिवादी मानसिकता!
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भीलवाड़ा, : राजस्थान सरकार ने एक बार फिर अपनी कथित 'शिक्षा क्रांति' का असली चेहरा दिखा दिया है। भीलवाड़ा के सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के मासूम बच्चों को बैग की राशि तो कुंडली मार दी, ऊपर से यूनिफॉर्म के नाम पर खुलेआम भेदभाव का तांडव मचा रही है। क्या यह शिक्षा का अधिकार है या गरीब-गरीबों का मजाक? सामान्य और ओबीसी वर्ग के हजारों बच्चों को वर्दी का पैसा देने से इनकार कर सरकार ने साफ बता दिया कि 'सबका साथ, सबका विकास' सिर्फ चुनावी जुमला है – असल में तो यह 'कुछ का साथ, बाकी का वंचन' है!

दरअसल, इस साल सरकार ने कक्षा 1 से 8 तक के सभी बच्चों के लिए बैग की राशि जारी करने का ऐलान किया था, लेकिन अब वह भी हवा में उड़ गई। ऊंट के मुंह में जीरा – यूनिफॉर्म की राशि तो केवल बालिकाओं, एससी, एसटी और बीपीएल वर्ग के 'चुने हुए' बच्चों को ही मिलेगी। बाकी? हा हा, वे तो 'सामान्य' हैं ना – सामान्य मतलब 'भूखे मरने लायक'! क्या अपराध किया है इन ओबीसी और सामान्य वर्ग के बच्चों ने, जो उन्हें स्कूल में बिना वर्दी के घूमने को मजबूर किया जा रहा है? यह भेदभाव नहीं, तो फिर क्या है – जाति-आधारित 'रिजर्वेशन' का उल्टा चक्रवर्ती प्रभाव?

स्कूल शिक्षा बजट में लगातार हो रही कटौती ने तो सरकार की पोल खोल दी है। शिक्षा के नाम पर 'कुर्सी की राजनीति' चल रही है, जहां बच्चे महज मोहरे हैं। याद कीजिए, पहले कक्षा 8, 10 और 12 के बोर्ड टॉपर्स को लैपटॉप देने का वादा किया, फिर सस्ते टैबलेट ठूंस दिए – जैसे बच्चे कोई पुराना फोन हैं! विवेकानंद स्कॉलरशिप में विदेशी यूनिवर्सिटी की संख्या 150 से घटाकर 50, और छात्रों की संख्या 300 से 150 कर दी – बधाई हो, अब 'मेरिट' का मतलब 'कम लोगों को मिले'! शिक्षक दिवस का ब्लॉक स्तरीय सम्मान समारोह? खत्म! राज्य स्तरीय सम्मान में 99 की जगह 66 शिक्षकों को पुरस्कार – क्योंकि 'बचत' तो करनी है ना, बच्चों की कीमत पर! पद्माक्षी पुरस्कार में 12वीं की छात्राओं की स्कूटी और राशि में कटौती – क्या अब 'सपनों' पर भी टैक्स लगेगा?

यह सब संयोग नहीं, सरकार की सोची-समझी रणनीति लगती है। केंद्र सरकार से अनुमोदन अटकने का बहाना बनाकर राज्य स्कूल शिक्षा परिषद की राज्य परियोजना निदेशक अनुपमा जोरवाल ने पत्र जारी किया, जिसमें साफ कहा गया कि कक्षा 1 से 8 तक की 'सभी छात्राओं' और एससी, एसटी, बीपीएल वर्ग के 'चयनित' छात्रों के खातों में ही राशि हस्तांतरित होगी। बाकी? भूल जाओ! मंगलवार से मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा फलोदी से इस 'विशेष वितरण' की शुरुआत करेंगे – लेकिन सवाल वही, बाकी बच्चों का क्या? क्या वे स्कूल में नंगे घूमेंगे, या घर पर ही पढ़ाई करेंगे?

विपक्ष ने सरकार को घेरा है, लेकिन असली सवाल तो जनता से है: यह कैसी 'नई शिक्षा नीति' है, जहां बजट कटौती के नाम पर बच्चों के भविष्य को बर्बाद किया जा रहा है? शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान में सरकारी स्कूलों में नामांकन पहले ही घट रहा है – अब यह भेदभाव तो ड्रॉपआउट को दोगुना कर देगा! विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र से अनुमोदन की देरी तो बहाना है; असल में राज्य का अपना बजट ही 'शिक्षा-विरोधी' हो चुका है।

क्या कहें? सरकार, अगर शिक्षा में समानता लानी है, तो पहले 'सभी' बच्चों को बराबर का हक दो – वरना यह 'यूनिफॉर्म घोटाला' इतिहास में काला अध्याय बन जाएगा! भीलवाड़ा के अभिभावक सड़कों पर उतरने को तैयार हैं। क्या सरकार सुनेगी, या फिर 'कुंडली मार' देगी?

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