जब डॉक्टर लिखेंगें जेनेरिक दवाएं, तब रुकेगी कंपनियों की रिश्वतखोरी; सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर अगर सिर्फ जेनेरिक दवाएं लिखें तो दवा कंपनियों की रिश्वतखोरी बंद हो सकती है। शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें फार्मास्युटिकल मार्केटिंग की समान संहिता पर कानून बनने तक दवा कंपनियों की अनैतिक विपणन प्रथाओं को नियंत्रित करने के दिशा-निर्देश की मांग की गई थी।
डॉक्टरों पर दबाव बनाती हैं दवा कंपनियां- कोर्ट
मामले में जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा, दवा कंपनियां अत्याधिक और तर्कहीन दवाएं लिखने के लिए डॉक्टरों पर दबाव बनाते हैं। उन्हें खास ब्रांड पर जोर देने के लिए रिश्वत की पेशकश करते हैं। इस पर अंकुश तभी लगेगा जब डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवाएं ही लिखने का वैधानिक आदेश आएगा। पीठ ने कहा, चूंकि मामले में कुछ समय लगेगा, इसलिए वह इसे अवकाश के बाद सुनवाई के लिए रखेगा।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया कि प्रतिवादियों ने जवाबी हलफनामा दायर किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति नियुक्त की गई है। हालांकि, रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि समिति ने सिफारिश के रूप में क्या सुझाव दिया है। इस पर जस्टिस मेहता ने पूछा, क्या कोई वैधानिक आदेश है कि डॉक्टरों को सिर्फ जेनेरिक दवाएं लिखनी चाहिए, न कि किसी विशिष्ट कंपनी या ब्रांड की दवाओं को। वकील ने जवाब दिया कि कोई वैधानिक जनादेश नहीं है और सिर्फ एक स्वैच्छिक कोड है कि डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक मामला था।
राजस्थान को बनाना होगा उदाहरण
जस्टिस मेहता ने कहा, राजस्थान में, एक कार्यकारी निर्देश है कि प्रत्येक मेडिकल पेशेवर को जेनेरिक दवा लिखनी होगी। वे किसी भी कंपनी के नाम से निर्धारित नहीं कर सकते हैं। इसे एक उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। प्रतिवादी के एडवोकेट ने सूचित किया कि वास्तव में इंडियन मेडिकल काउंसिल ने भी सभी डॉक्टरों के लिए सिर्फ जेनेरिक दवाएं लिखने का निर्देश दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी।