भगवान भाव के भूखे= पंडित ललित शरण शास्त्री

पुर। उपनगर पुर में भारद्वाज वाटिका में पूज्य पंडित ललित शरण शास्त्री द्वारा भागवत कथा का वाचन किया जा रहा है जिसमे में चल रही संगीतमय भागवत कथा की तीसरे दिन वृंदावन धाम के पूज्य पंडित ललित शरण शास्त्री ने भक्त और भगवान के संबंध को समझाते हुए कहा कि भगवान हमेशा भक्त के भाव के भूखे रहते हैं अन्य किसी वस्तु के नहीं। पूज्य पण्डिय जी ने बताया कि भगवान प्रेम के भूखे होते हैं जो विदुर के यहां भोजन करने पधारे जहां पर विदुरानी भगवान को केले के छिलके खिलाते हुए फल फेंक रही है। और उन्होंने बताया कि विदुर भगवान को पेड़ा-मिश्री खिलाना चाहा। मगर भगवान ने मना करते हुए कहा कि जो आनंद छिलके में है, वह पेड़ा-मिश्री में नहीं है जो प्रेम विदुरानी के हृदय में था, वह विदुर जी के मन में नहीं था। प्रभु के प्रेम में विदुरानी अपने तन की सुधि भूल चुकी थी। इसी भाव में उन्होंने दुर्योधन की मेवा त्यागी और साग विदुर के घर खाया और उन्होंने बताया कि दुर्योधन के छप्पन भोग को त्याग करके भगवान ने प्रेम की मिसाल पेश की। प्रेम शंकर ने आचार्य ने बताया कि पंचमुखी बालाजी के महन्त जमुनादास महाराज एवं पुजारी मुरारी पांडे का कथा में पधारने पर सम्मान किया । कथा में विशेष सहयोग के लिए मांगीलाल विश्नोई, सुरेंद्र विश्नोई, दिनेश कुमार तेली, भेरुलाल लोहार, रमाकांत , चंद्रशेखर भैरूशंकर का भी सम्मान किया गया । कथा में गांव के सैकड़ो श्रोतागण उपस्थित थे । इस अवसर पर चांदमल विश्नोई, रामचंद्र बिश्नोई मदन छिपा नानूराम माली गणपत चौबे मांगीलाल रेगर गोपाल टेलर, ऊकार भगत, हरिशंकर बिश्नोई, गोपी लाल बिश्नोई, मनोहर आचार्य, जगदीश अठारिया, शिवानंद बाघेला उपस्थित रहे।
