संस्कृत भाषा भारत की आत्मा है, ज्ञान के लिए संस्कृत का अध्ययन होना जरूरी है
राजेश शर्मा धनोप। संस्कृत में निहित है सबके मंगल की भावना। संस्कृत भाषा भारत की आत्मा है तथा इसके द्वारा ही भारत का पुनरुत्थान सम्भव है। संस्कृत साहित्य में सबके मंगल व विश्वकल्याण की भावना निहित है। ज्ञान-विज्ञान की भाषा संस्कृत व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने में सहायक है। यह बात रोपाँ ग्राम के महात्मा गाँधी राजकीय विद्यालय में संस्कृत भारती द्वारा आयोजित संस्कृत सम्भाषण शिविर के समापन समारोह में मुख्य वक्ता डॉ. सत्यनारायण कुमावत ने कही। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आनुसांगिक संघटन प्रज्ञा प्रवाह के राजस्थान क्षेत्र के सहसंयोजक कुमावत ने दैनिक व्यवहार में संस्कृत भाषा को अपनाने पर बल दिया। संस्कृतभारती के प्रान्त सह मन्त्री व विद्यालय के प्राचार्य डॉ. मधुसूदन शर्मा ने बताया कि इस पन्द्रह दिवसीय शिविर में संस्कृत माध्यम से संवाद, वाक्य रचना, खेल, गीत, सुभाषित, नाटक आदि के द्वारा शिविरार्थियों को संस्कृत भाषा में बातचीत करना सिखाया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्कृतभारती के प्रान्त मन्त्री डॉ. परमानन्द शर्मा ने संस्कृत सम्भाषण के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए देववाणी संस्कृत को जनवाणी बनाने हेतु संस्कृतभारती संघटन द्वारा चलाए जा रहे प्रकल्पों के बारे में बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात कवि व शिक्षाविद् कैलाश मण्डेला ने संस्कृत के प्रचार-प्रसार हेतु संस्कृतभारती व विद्यालय द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति के ज्ञान हेतु संस्कृत का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है।
कार्यक्रम के दौरान शिविरार्थियों के द्वारा संस्कृत माध्यम से नाटिका, गीत, नृत्य, श्लोक आदि की आकर्षक प्रस्तुतियाँ दी गयी। इस अवसर पर उप प्राचार्य अंजनी कुमार शर्मा, प्राध्यापक मदन लाल मीणा, समाजसेवी कैलाश चन्द्र शर्मा , कैलाश चन्द्र प्रजापति, पंकज शर्मा, जगदीश शर्मा, ओमप्रकाश साहू, राकेश सैनी, सोनिया बसीटा, उर्वशी टांक व अन्य कार्यकर्ता व शिक्षक उपस्थित रहे।