जो गुरू के गुलाम बनते है उन्हें संसार का गुलाम नहीं बनना पड़ता-समकितमुनिजी

भीलवाड़ा हैदराबाद, । आयम्बिल तप के महान आराधक पूज्य गुरूदेव भीष्म पितामह राजर्षि सुुमतिप्रकाशजी म.सा. की जयंति बुधवार को उनके सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में आयम्बिल दिवस के रूप में मनाई गई। पूज्य गुरूवर के श्रीचरणों में एक आयम्बिल की भेंट चढ़ाने की प्रेरणा देने से इस दिन देशभर में तय लक्ष्य 11 हजार 111 से भी अधिक आयम्बिल हुए तो मात्र हैदराबाद त्रय नगर में ही 1100 से अधिक आयम्बिल तप हुए। प्रज्ञामहर्षि डॉ.समकितमुनिजी म.सा. ने पूज्य गुरूदेव सुमतिप्रकाशजी म.सा. के जीवन में समाहित गुणों की चर्चा करते हुए कहा कि गुरू कृपा की चाबी के बिना परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। गुरू का दखल अपनी जिंदगी में होना ही चाहिए। गुरू शिष्य का जीवन अनुशासित बनाने ओर संवारने के लिए उसकी गलती पकड़ता भी है ओर थप्पड़ भी मारता है। जो गुरू के गुलाम बनते है उन्हें संसार का गुलाम नहीं बनना पड़ता है। जो गुरू को गुलाम बनाकर रखते है उनको संसार की गुलामी करने के लिए बार-बार जन्म लेना पड़ता है। मुनिश्री ने कहा कि बिना अनुशासन परमात्मा नहीं बना जा सकता है। अनुशासित रखने वाले गुरू ही जीवन नैया को पार लगाते है। गुरू परमात्मा के साथ जोड़ने का कार्य करते है। गुरू वह है जो हमारे राग द्धेष खत्म करा कषायों का बंधन ढीला कर दे। गुरू का काम राग द्धेष बढ़ाने वाला नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि हम आने वाली पीढ़ी को प्रेम व सद्भावना की विरासत सौंप कर जा रहे है तो हमारा आना सफल है ओर यदि राग द्धेष व कषाय की विरासत सौंप कर जा रहे है तो समझ लेना जन्म से तो इंसान थे पर मरते समय कसाई बन गए। हथियार तो एक बार मारता है पर राग द्धेष जैसे कषाय पता नहीं कितने जन्मो तक मारते रहते है। समकितमुनिजी ने कहा कि पूज्य गुरूदेव सुमतिप्रकाशजी म.सा. उन महान गुरूओं में शामिल है जिन्होंने संघ-समाज के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। गुरूदेव की प्रेरणा से ग्रेटर हैदराबाद सहित देश में कई स्थानों पर स्थानक भवनों का निर्माण हुआ। कोई किराये की जगह पर चातुर्मास की विनती करता तो उसे यहीं कहते पहले अपना स्थानक भवन बनाओ फिर चातुर्मास का विचार करेंगे। नवकार महामंत्र ओर आयम्बिल तप मेें उनकी गहरी आस्था थी ओर जो भी उनके पास आता उन्हें नवकार महामंत्र की शरणा लेने की प्रेरणा देते थे।

*जब तक गुरू नहीं सुधरेंगे श्रावक नहीं सुधर सकते*

समकितमुनिजी म.सा. ने कहा कि पंथों व सम्प्रदायों में झगड़े का कारण तीर्थंकर भगवन्त नहीं बल्कि धर्मगुरू है। ये धर्मगुरू यदि एक हो जाए तो समाज की एकता पक्की है। धर्मगुरू आपस में मिलने लग जाए तो उन्हें मानने वाले आसानी से आपस में मिल जाएंगे। जब तक गुरू नहीं सुधरेंगे श्रावक नहीं सुधर सकते। कोई स्वीकार करे या नहीं पर ये हकीकत है कि संघ समाज के झगड़ो में गुरूओं की भूमिका भी होती है। परमात्मा ने संतों को मुनीम बनाया पर वह मालिक बनकर बैठ गए। खुद को भगवान समझ बैठने से ही यह रगड़े-झगड़े शुरू हुए है। धर्मसभा में गायनकुशल जयवंतमुनिजी म.सा. ने भजन ‘‘कभी शिरकत भी गुरूनाम की भक्ति में दीजिए’’ की प्रस्तुति दी। धर्मसभा में प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। ग्र्रेटर हैदराबाद संघ के संघपति स्वरूपचंद कोठारी, हर्षकुमार मुणोत आदि ने भी पूज्य गुरूदेव के प्रति भावांजलि अर्पित की। श्रीसंघ द्वारा अतिथियों का स्वागत सम्मान किया गया। धर्मसभा में मैसूर, जोधपुर, चित्तौड़गढ़, चैन्नई सहित विभिन्न स्थानों से पहुंचे कई गुरूभक्त श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे।

*श्रावक ऑफ दी चातुर्मास का सम्मान अनिल मुथा को प्रदान*

धर्मसभा में समकितमुनिजी म.सा. ने घोषणा की सद्गुरू सुमति सेवा समिति की ओर से वर्तमान चातुर्मास में श्रावक ऑफ दी चातुर्मास का सम्मान सुश्रावक अनिल मुथा को प्रदान किया जाता है। समिति के पदाधिकारियोें ने उन्हें ये सम्मान प्रदान किया। श्री अनिल मुथा पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. की जयंति पर हैदराबाद त्रय नगर में आयम्बिल करने वालों की प्रभावना के लाभार्थी भी रहे। इसके लिए उनका ग्रेटर हैदराबाद संघ की ओर से भी सम्मान किया गया। संघ द्वारा आयम्बिल संयोजक गौतमजी चौरड़िया व सज्जनजी गुंदेचा का भी सम्मान किया गया। आयम्बिल दिवस व नवपद ओली आराधना के लाभार्थी मदनलालजी अन्नराजजी बाफना परिवार की भी श्रीसंघ द्वारा अनुमोदना की गई। पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. की जयंति के उपलक्ष्य में सद्गुरू सुमति सेवा समिति की ओर से अन्नप्रसादम का भी आयोजन किया गया। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के महामंत्री सज्जनराज गांधी ने किया।

*तपस्वी सुश्रावक अनिल सुराणा ने चातुर्मास में की 51 दिन तप आराधना*

धर्मसभा में सुश्रावक अनिल सुराणा ने 9 उपवास के प्रत्याख्यान पूज्य समकितमुनिजी म.सा. के मुखारबिंद से ग्रहण किए तो अनुमोदना के जयकारे गूंज उठे। इस चातुर्मास में 15 उपवास,11 उपवास के साथ दो अठाई तप आदि सहित कुल 51 दिन तप आराधना करने पर श्री सुराणा का ग्रेटर हैदराबाद संघ की ओर से भी सम्मान किया गया। समकितमुनिजी म.सा. ने भी उनके प्रति मंगलभावनाएं व्यक्त की। चातुर्मास में भगवान महावीर स्वामी की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र की दीपावली तक चलने वाली 21 दिवसीय आराधना 10 अक्टूबर से शुरू होगी।

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