जीवन में यदि प्रेम नहीं है तो कुछ नहीं है - पंडित दुर्गेश

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आकोला (रमेश चंद्र डाड) कस्बे में देवनारायण मंदिर में चल रही भागवत कथा के दौरान शुक्रवार को पंडित दुर्गेश चतुर्वेदी ने बताया अस्ति और प्राप्ती से जो संतुष्ट नहीं है ।वह कंस है कंस अभिमांन का रूप है। अभिमांन किसी से संतुष्ट नहीं होता है। अभिमांन को मिटाया जा सकता है तो केवल और केवल सरलता से मिटाया जा सकता है ।सहजता से मिटाया जा सकता है हम सहज जीवन जिए तो अभिमांन दूर हो सकता है ।बाकी तो जैसे-जैसे जीव को लाभ मिलता है ।वैसे-वैसे अभिमांन प्रबल होता जाता है। सहज रूप में भगवान श्री कृष्णा पधारे और कंस रूपी अभिमांन को मिटाया। इसके बाद उद्धव के ज्ञान गर्व की चर्चा करते हुए बताया कितने ही शास्त्र पढ़ लो कितना ही ज्ञान ले लो कितने ही वैराग्यवान हो जाओ पर जीवन में यदि प्रेम नहीं है तो फिर कुछ नहीं है ।पृथ्वी पर सबसे शक्तिमान अगर कोई भक्ति का मार्ग है तो वह प्रेम का मार्ग है प्रेम का मार्ग समर्पण है। जिसमें प्रेम की पूर्णता है वह परमात्मा को सहज का सकता है। जरासंध के प्रसंग में जरा का अर्थ बुढ़ापा है बुढ़ापा जब कलयेवन के साथ शरीर पर आक्रमण करता है। तब भगवान मथुरा रूपी शरीर को त्याग कर द्वारिका रूपी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं द्वारिका नगरी उस शरीर को बोला जाता है जिस शरीर की दसों इंद्रियों भगवत भक्ति की ओर लगी रहे जिस शरीर की 10 इंद्रियां भक्ति रस में डूबी हो उस शरीर में साक्षात कृष्ण का निवास होता है। रुक्मणी विवाह प्रसंग बताते हुए रुक्मणी द्वारा संदेश भेजना भगवान द्वारा रुक्मणी जी का हरण करना द्वारिका में भगवान का विवाह संपन्न होना आदि प्रसंगों पर कथा में चर्चा हुई ।

बन्नू मारो चारभुजा को नाथ घणा दिन सो लियो रे कितना प्यारा है। श्रृंगार आदि भजनों पर महिला पुरुष सभी झूम कर नाचने लगे। कृष्ण और रुक्मणी की जीवंत झांकी के दर्शन कर सभी शराबौर हुए।

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