शस्त्र एवं शास्त्र पूजन द्वारा धर्मो रक्षति रक्षितः को चरितार्थ करने की आवश्यकता

शस्त्र एवं शास्त्र पूजन द्वारा धर्मो रक्षति रक्षितः को चरितार्थ करने की आवश्यकता
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भीलवाड़ा/ राष्ट्र सेविका समिति द्वारा विजयादशमी उत्सव का आयोजन अखिल भारतीय व्यवस्था प्रमुख माननीय वंदना जी वजीरानी के सानिध्य में हुआ। अतिथियों द्वारा शस्त्र एवं शास्त्र पूजन के साथ कार्यक्रम आरंभ हुआ। सेविकाओं ने प्रात्यक्षिक के तहत मान वंदना, घोष, नियुद्ध, दंड, ध्वज संचलन, दंड योग का प्रदर्शन किया। भीलवाड़ा विभाग कार्यवाहिका मनीषा जी जाजू ने प्रस्तावना प्रस्तुत की।

मुख्य अतिथि भगवती जी करमानी ने सेविकाओं द्वारा प्रात्येक्षिक के प्रदर्शन को देखकर कहा कि इस प्रकार के अद्भुत आयोजन का मेरा पहला अनुभव है। शस्त्र और शास्त्र पूजन की ऐसी प्रथा को देखकर यह शक्ति का पर्व महसूस होता है। यदि प्रत्येक नारी आज एक एक शस्त्र उठा ले तो कितना बड़ा संगठन खड़ा हो सकता है, इसका साक्षात उदाहरण सामने है।

रीना दीदी ने अपने बौद्धिक में राष्ट्र की प्रगति में मातृशक्ति के योगदान को बराबर महत्व देते हुए मौसीजी लक्ष्मीबाई केलकर ने 1936 में वर्धा में विजयादशमी पर राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की। पौराणिक कथाओं के विभिन्न उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यह बुराई पर अच्छाई, अन्याय पर न्याय, अधर्म पर धर्म की विजय का उत्सव है। जब महिला वीर शिवा जैसे बालकों का निर्माण भी कर सकती है तो समाज और राष्ट्र के निर्माण में भी योगदान दे सकती है। हमारे संगठन द्वारा राष्ट्र कार्य में अग्रसर रहने का सुंदर संदेश देने के लिए ही पथ संचलन, प्रात्येक्षिक, शस्त्र पूजन जैसे आयोजन किए जाते हैं। इनके माध्यम से संगठन के संदेश और संस्कार को घर घर की मातृशक्ति तक पहुंचाने की आवश्यकता है। महिलाओं की संकल्प शक्ति अद्भुत होती है। हमारे सामने रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या बाई होलकर जैसे अनेक उदाहरण हैं। परंतु आज नवरात्र का अर्थ मात्र सजने संवरने और डांडिया तक सीमित रह गया है। आजकल पाश्चात्य देशों में हमारी भारतीय संस्कृति के उदाहरण देखने को मिल जाते हैं और हम हैं कि अपनी महान गौरवशाली संस्कृति को त्यागकर पाश्चात्य संस्कृति की होड़ में लगे पड़े हैं। समिति और इसके दायित्व हमें भारतीय संस्कारों को पोषित करने की शिक्षा देते हैं। परम पवित्र भगवा ध्वज हमें त्याग का संदेश देता है। यह करणीय कार्य है कि अपनी संस्कृति और इतिहास को हम आगे की पीढ़ियों तक पहुंचाने का उत्तरदायित्व निभाएं। आज हम अखंड भारत की बात करते हैं, परंतु क्या हम सच में संगठित हैं? यह विचारणीय है। हम प्रमुख संचालिका द्वारा देखे गए विशाल संगठन के स्वप्न को परिवार, समाज और राष्ट्र को संगठित कर साकार करने की दिशा में अग्रसर हो। सभी सेविकाएं एक दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर संगठन को आगे बढ़ाएं।

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