दुराग्रह से विषमता,विग्रह और अव्यवस्था का जन्म होता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

दुराग्रह से विषमता,विग्रह और अव्यवस्था का जन्म होता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
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गोगुन्दा

श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ तरपाल के भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि धर्म स्नेह,सद्भाव से जीने का संदेश देता है।जो पारस्परिक स्नेह सद्भाव को समाप्त कर दे,वह धर्म नही है।साम्प्रदायिक कटटर ताये दुराग्रह को पैदा करती है।विषमता ,विग्रह,कषाय एवं संकीर्णता में धर्म नही है।इससे मुक्त होने पर ही धर्म का दिव्य तेज चमकता है।महाभारत का शांतिपर्व में स्पष्ट रूप से कथन है-जहाँ सत्य है,वहां धर्म का जन्म होता है।करुणा के भाव से उसका विकास होता है।क्षमा के भाव से धर्म ठहरता है।संत ने कहा आस्था एक शक्ति है।एक सम्बल है इसे भंग नही होने दे।हमारी संस्कृति आशा और विश्वास की संस्कृति है।जीवन के सारे श्रेष्ठ मूल्य आस्था पर टिके हुए है।वे मूल्य रचनात्मक है।व्यक्ति ,परिवार समाज और राष्ट्र की संरचना में उन मूल्यों का बहुत महत्व है।हमारी सारी जीवन पद्धतियां आदर्श मूल्यों का सरंक्षण करते हुए चलती है।किंतु इधर आधुनिकता जे नाम पर जो अति तर्कवाद पनपा है।उसने उन मूल्यों को हानि पहुंचाई है।क्यो का कभी अंत नही आता।संस्कृति खण्ड खण्ड निर्णय नहीं दिया करती।उसके सामूहिक निर्णय होते है।वे कही कही अनुपयोगी भी हो सकते है किन्तु उपयोगिता की मात्रा अधिक हो तो उन्हें कुरुढ़ि नही कहा जा सकता।जैन संत ने कहा अति तर्कवाद हमारे सांस्कृतिक धार्मिक संकट पैदाकर रहा है।उसका आस्था को पुष्ट कर मुकाबला करना होगा।मुनि ने कहा आने वाली पीढ़ी को सचेत करना होगा।मुनि ने कहा ऐसे अनास्था पूर्णतर्क से अपने को बचाना चाहिए।हमारे जीवन मूल्य श्रेष्ठ और सर्वथा उपयोगी है।सदियों से यह परीक्षित है।उन्हें नष्ट करना अपना सर्वस्व गंवाने जैसा सिद्ध होगा।आस्था हमारा सम्बल है,शक्ति है,प्रेरणा है,उसे अक्षुण्ण रखते हुए एक महान भारत का निर्माण करना है।

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