दूसरों को दुःख देकर सुखी नहीं हो सकते , नारी की सबसे बड़ी शत्रु नारी हो रही है

दूसरों को दुःख देकर सुखी नहीं हो सकते , नारी की सबसे बड़ी शत्रु नारी हो रही है
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आकोला (रमेश चंद्र डाड) दूसरे व्यक्तियों को दुःख देकर कोई सुखी नहीं हो सकता है दूसरों को सुख देने से ही असली सुख की प्राप्ति होगी अतः व्यक्तियों के दुखों को बांटिए प्राणी मात्र की सेवा करिए।

यह विचार मंगलवार को सिंगोली में संगीतमय भागवत कथा के प्रवचन करते हुए कथा मर्मज्ञ प्रेम नारायण ने प्रकट किए।उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में नारी की सबसे बड़ी शत्रु नारी ही बनी हुई है। नारी ममत्व , सेवा और प्रेम के भाव से पृथक होती जा रही है। अगर सास आने वाली बहु को पुत्री मान ले तो घर स्वर्ग से भी सुन्दर हो जाए लेकिन आज हालात विपरीत है।


प्रेम नारायण ने कहा कि बिना व्याकुलता के भगवान का भजन भी आनंद प्रदान नहीं करता है। सांसारिक दुख में तो रोने वाले व्यक्ति बहुत मिल जायेंगे किन्तु भगवान के दुख मे रोने वाले बहुत कम मिलेंगे। भगवान के प्रेम की ज्योति वही जगा सकते है जो भगवान के आनन्द में जिए।

उन्होंने कहा कि जैसे जल बिन मछली तड़पती है उसी तरह मनुष्य रूपी जीव भी हरि बिन तड़प जाए उसी दिन मान लीजिए आपके हृदय के भीतर उजाला हो गया। संतो का तो यही कहना होता है गोविन्द को भजना , आनंद में रहना, आनंद में जीना और आनंद में ही जाना।

प्रेमनारायण ने जरासंध वध , शिशुपाल वध , गोपी प्रंसग सहित अन्य प्रसंगों की सारगर्भित व्याख्या की। भाव पूर्ण कथा में अनेकों श्रद्धालुओं के नेत्र सजल हो गए।

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