गांवों में तेज आवाज में बज रहेे है डीजे, दिल और दिमाग को दे रहे पीड़ा

गांवों में तेज आवाज में बज रहेे है डीजे, दिल और दिमाग को दे रहे पीड़ा
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भीलवाड़ा (मदनलाल वैष्णव)। राजस्थान कोलाहल नियंत्रण अधिनियम 1963 के अनुसार रिहायशी इलाके में बिना परमिशन के सुबह 6 से पहले और रात के 10 बजे के बाद डीजे साउंड या लाउड स्पीकर का उपयोग करने पर प्रतिबंध है। बावजूद इसके कई इलाकों में बिना किसी परमिशन के डीजे बेधडक़ उपयोग में लाए जा रहे है। खासकर गांवों में तो हालत बहुत ही खराब है।

गांवों में रात 2 बजे तक मोबाइल डीजे बजाए जा रहे है जो एक ओर नींद के दुश्मन बन रहे है तो दूसरी ओर कानों और ह्रदय के लिए परेशानी बने हुए है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार किसी भी रिहायशी इलाके में सुबह 6 बजे से पहले और रात के 10 बजे के बाद किसी भी तरह का संगीत या डीजे बजाने पर सख्त रुप से पाबंदी है। जिस पर प्रशासन और पुलिस की ओर से किसी प्रकार की कार्रवाई नजर नहीं आती है।

नियम कायदे ताक में

राजस्थान कोलाहल नियंत्रण अधिनियम 1963 के अनुसार रिहायशी में बिना परमिशन के सुबह 6 से पहले और रात के 10 बजे के बाद डीजे साउंड या लाउड स्पीकर का उपयोग करने पर प्रतिबंध है। बावजूद इसके कई इलाकों में बिना किसी परमिशन के डीजे बेधडक़ उपयोग में लाए जा रहे है। डीजे वाले वाहनों में क्षमता से अधिक एम्पीफायर और बेस बांध लेते हैं जो ध्वनि की तीवृता को और बढ़ा देते है। वहीं लोगों का कहना है कि इसके लिए शिकायत करने पर भी पुलिस द्वारा थाने में शिकायत दर्ज करवाने के लिए कहा जाता है जिसके बाद ही कार्रवाई का आश्वासन दिया जाता है।

सीमा 55 डेसीबल की डीजे चल रहे 100 डेसीबल पर

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा तय सीमा के अनुसार रिहायशी इलाकों में सुबह 6 से रात 10 बजे तक के समय को डेटाइम और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक को नाइट आइम कहा गया है। जिसमें दिन के समय में ध्वनि प्रदूषण की सीमा 45 डेसीबल से 65 डेसीबल और रात के समय में 45 डेसीबल से 55 डेसीबल तक निधारित की गई है। लेकिन ध्वनि प्रदूषण की सीमा कई इलाकों में 100 डेसीबल तक पुहंच जाती है जो कानों के लिए ही नहीं बल्कि ह्रदय के लिए भी द्यातक साबित होती हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार 75 डेसीबल से ऊपर वाले संगीत में रहना कानों और दिल के लिए हानिकारक है। वहीं इससे घरों की दीवारों में दरारें तक आ सकती है। क्योंकि डेसीबल ज्यादा होने से ध्वनि तरंगों की आवृत्ति अधिक होती है जो नुकसान देह है।

सिर दर्द, कानों में अस्थाई बहरापन और ह्रदय के लिए घातक

डीजे से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के कारण शरीर के कई अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। डॉक्टरों का कहना है कि तय सीमा से अधिक डेसीबल के संगीत में रहने से कानों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण अस्थाई बहरापन, कानों का सुन्न होना, दर्द होना और टिनिटस की बीमारी हो सकती है। जिसमें कानों में तेज घंटियों के बजने की आवाज आती रहती है। तय सीमा से अधिक बेस होने से ह्रदय गति पर भी असर पड़ता है वृद्वजनों के लिए तेज बेस पर बजने वाले डीजे ज्यादा द्यातक होते हैं क्योंकि उन्हें दिल की बीमारी का जोखिम ज्यादा रहता है। वहीं तेज ध्वनि के ह्रदयघात भी हो सकता है।

लोगों का कहना है गांवों में देर रात तक डीजे बजते रहते हैं शादियों के सीजन में तो ये रात के 1 से 2 बजे तक बजते है। आवाज कम करने को कहो तो उल्टे धमकी देते है।

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