भगवान मेरे हैं में भगवान का हुँ यह भाव ही परमात्मा तक ले जाते हैं - अशोक भाई

आकोला ( रमेश चंद्र डाड) कोटड़ी सरस्वती विद्या मंदिर माध्यमिक विद्यालय में पांच दिवसीय सत्संग कार्यक्रम के चौथे दिन गुरुजी अशोक भाई ने कहा कि भगवान मेरे हैं मैं
भगवान का हूं यह इच्छा ही to प्रभु तक ले जाएगी मन शुद्ध पवित्र होगा तो भगवान के भजन में आसानी होगी ! अंतःकरण में अगर राग, द्वेष हो तो यही अन्तःकरण की अशुद्धि होगी ! अन्तःकरण शुद्ध होगा तो हमारे कर्म भी अच्छे होंगे मानव शरीर जप-तप साधना के लिए मिला लेकिन इसका प्रयोग संसार की मोह माया में फंसा हुआ है !द्वापर युग के बाद हमारे अन्तःकरण को शुद्ध करने का कोई उपाय या धर्म मार्ग है तो वह भागवत सत्संग है ! भागवत भगवान की वाघमह्य मूर्ति है एक मन में प्यास है तो परमात्मा का मिलना आसान है प्रेम से परमात्मा की प्राप्ति संभव है प्रेम के बाप का नाम विश्वास ओर पाप के बाप का नाम लोभ हैं इसको एक उदाहरण देते हुए बताया एक महाराज ने घर देखा और वहां चले गए घर जाने के बाद पता चला यह वेश्या का घर है तो वह वापस जाने लगे वेश्या ने कहा कि महाराज आप मेरी यहां रूकिये में एक सोने का सिक्का दूंगी अगर भोजन पाया तो दो सोने के सिक्के दूंगी मेरे हाथ का भोजन पाया रो पाँच सोने के सिक्के दूँगी महाराज लालच में आ गए आ हाँ बोल दिया तो वेश्या ने तपाक से दो थप्पड़ लगाकर कहां की यही पाप का बाप लोभ है इसलिए हमें इस पाप को छोड़ देना चाहिए सहारा रखना है तो परमात्मा का रखिए गिड़गिड़ाने से संसार में हंसी ही होती है मुक्ति असंभव है! भगवान को प्रेम से ही नहीं भाव से भजिये ! अश्वमेध यज्ञ करने के बाद भी पुनः संसार में आना होगा लेकिन एक बार परमात्मा का भाव प्राप्त हो गया तो पुनः जाने जाने का चक्र समाप्त हो जाएगा! सत्संग का आनन्द लेने के लिए आस-पास के जिलों से भी भक्त पहुंचे ओर सत्संग का आनंद लिया !