मुआवजा नहीं तो डोडा चूरा का निस्तारण नहीं: अफीम किसानों का आबकारी विभाग में प्रदर्शन

आकोला (रमेश चंद्र डाड) ! अफीम उत्पादक किसानों ने आबकारी विभाग में बिजोलिया में कैंप लगाकर विरोध प्रदर्शन किया। बिजोलिया तहसील के सभी अफीम किसानों ने एक स्वर में कहा कि जब तक उन्हें मुआवजा नहीं मिलेगा, वे डोडा चूरा का निस्तारण नहीं करवाएंगे।
आज आबकारी विभाग ने बिजोलिया तहसील के चांद जी की खेड़ी में अफीम उत्पादक किसानों के डोडा चूरा निस्तारण के संबंध में एक कैंप का आयोजन किया। इस कैंप में जिला प्रशासन की ओर से तहसीलदार ललित डीडवानिया और चैन सिंह गिरदावर सलावटिया, आबकारी विभाग से निरीक्षक रमेश कुमार, निरीक्षक नाथू सिंह, मुख्य आरक्षी दुर्गा लाल और अफीम किसान संघर्ष समिति से बद्री लाल तेली (प्रांत अध्यक्ष, अफीम किसान संघर्ष समिति, चित्तौड़ प्रांत), सुरेश चंद्र, कैलाश धाकड़ (अध्यक्ष, तहसील बिजोलिया), शंकर लाल धाकड़, वर्दी चंद धाकड़, प्रभु लाल धाकड़, रूपलाल धाकड़, कमलेश धाकड़, शांतिलाल धाकड़, अशोक धाकड़, सुनील धाकड़ सहित कई अफीम किसान शामिल हुए।
सभी अफीम किसानों ने डोडा निस्तारण टीम को सर्वसम्मति से बताया कि मुआवजा नहीं मिलने तक वे डोडा चूरा नष्ट नहीं करेंगे। उन्होंने शिविर प्रभारी को इस संबंध में एक प्रार्थना पत्र भी दिया।
अफीम किसानों ने अपनी मांगों को रखते हुए कहा कि राजस्थान और अन्य राज्यों में अफीम उत्पादक किसानों को भारत सरकार अफीम उत्पादन के लिए लाइसेंस जारी करती है। भारत सरकार जीवन रक्षक दवाइयां बनाने के लिए निर्धारित मापदंडों के अनुसार अफीम तो खरीद लेती है, लेकिन उससे बचा हुआ डोडा चूरा 2016 से पहले राज्य सरकार द्वारा निर्धारित ठेका पद्धति पर ₹125 प्रति किलो खरीदा जाता था। राज्य सरकार ने इस प्रक्रिया को बंद कर दिया है और किसानों को डोडा चूरा नष्ट करने का आदेश दिया है। किसानों का कहना है कि इस डोडा चूरा को जमींदोज किया जाता है, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान होता है।
अफीम उत्पादक संघर्ष समिति, राजस्थान प्रदेश की मांग है कि अफीम किसानों को ₹2000 प्रति किलो के हिसाब से डोडा चूरा का मुआवजा वजन के अनुसार दिया जाए। या फिर किसानों को यह अधिकार दिया जाए कि वे अपने खेत में ही इसे हकाई करके नष्ट कर दें और किसान स्व-घोषित प्रमाण पत्र दे दें। किसानों का मानना है कि ऐसा करने से भूमि की उर्वरता भी बढ़ेगी और किसान शोषण से मुक्त भी होंगे।
किसानों ने यह भी बताया कि बहुत से किसानों के कच्चे मकान होने की वजह से डोडा चूरा को सुरक्षित रखना मुश्किल होता है। मवेशी इसे खा जाते हैं या बारिश में यह भीग जाता है। ऐसे में किसानों के लिए मापदंडों के अनुसार डोडा चूरा रखना संभव नहीं है।
किसानों ने सरकार से पुनः अनुरोध किया है कि जब तक उन्हें डोडा चूरा का मुआवजा ₹2000 प्रति किलो के हिसाब से नहीं मिल जाता, तब तक नष्ट करने के आदेश को स्थगित किया जाए। या फिर अफीम किसानों पर विश्वास करके उन्हें अपने ही खेत में नष्ट करने की अनुमति प्रदान की जाए, ताकि किसान का खेत भी उपजाऊ बने और जैविक खेती का प्रसार भी बढ़े।
सभी अफीम उत्पादक किसान डोडा चूरा का मुआवजा मिलने के बाद निस्तारण के लिए तैयार हैं।