आज से गुरु अस्त होने से मांगलिक कार्यों पर रोक, न करें ये काम

भीलवाड़ा । भीलवाड़ागुरु तारा अस्त होने की शुरुआत के साथ ही आज से मांगलिक और शुभ कार्यों पर अस्थायी विराम लग जाएगा।इसके साथ ही विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, मंदिर प्राण प्रतिष्ठा, शिलान्यास जैसे मांगलिक कार्यों पर पूर्ण विराम लग जाएगा। गुरु के अस्त रहते कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। उसके बाद देवशयनी एकादशी के साथ चातुर्मास शुरू हो जाएगा, जिसके कारण 1 के अस्त होने के कारण 4 जुलाई (आषाढ़ शुक्ल पक्ष की भडली नवमी) तक कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य जैसे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन आदि नहीं किए जाएंगे।
ज्योतिषाचार्यों विक्रम सोनी ने बताया कि गुरु (बृहस्पति) तारा के अस्त होने की स्थिति में शुभ कार्यों को वर्जित माना गया है, क्योंकि गुरु को विवाह, ज्ञान और धर्म का कारक ग्रह माना गया है। जब यह तारा अस्त होता है, तो शुभता में कमी आती है।
इस बीच केवल 5 जुलाई सुबह 5 बजकर 29 मिनट पर तारा उदय होने के साथ ही एक दिन के लिए शुभ कार्य संभव रहेंगे, लेकिन इसके अगले ही दिन 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। इस दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास का आरंभ हो जाता है। यह अवधि चार महीने तक चलती है, जिसमें हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते। इस वर्ष विशेष बात यह है कि 4 जुलाई को पड़ने वाली भडली नवमी, जिसे परंपरागत रूप से अबूझ मुहूर्त माना जाता है, उसमें भी शुभ कार्य नहीं होंगे। कारण यह है कि उस दिन गुरु तारा अस्त रहेगा, जिससे मुहूर्त निष्क्रिय हो जाता है। अब अगला शुभ मुहूर्त दीपावली के बाद एक नवंबर को कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रबोधिनी एकादशी से शुरू होगा, जब देवताओं की योगनिद्रा समाप्त होगी और मांगलिक कार्यों की शुरुआत फिर से हो सकेगी
सोनी के अनुसार, चातुर्मास में कुछ कार्यों की अनुमति होती है। इनमें तीर्थ यात्रा, दान, व्रत, उपवास, धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, अन्नप्राशन, पुराने निर्माण कार्य (जो पहले से चल रहे हों), वाहन या गहनों की खरीदारी, घर की मरम्मत या रेनोवेशन शामिल हैं। इनके लिए कोई विशेष मुहूर्त आवश्यक नहीं होता और गुरु अस्त या चातुर्मास का प्रभाव इन कार्यों पर नहीं पड़ता।
भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाएंगे
हिंदू पंचांग के अनुसार, 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। इस समय से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी तक चलता है। इस अवधि को धार्मिक अनुशासन, साधना, संयम और उपवास के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
चातुर्मास के दौरान न केवल विवाह आदि पर रोक होती है, बल्कि साधु-संत भी एक ही स्थान पर चार माह तक प्रवास करते हैं।