डालू बा नहीं रहे… लेकिन भजनों की गूंज छोड़ गए गांव को

डालू बा नहीं रहे… लेकिन भजनों की गूंज छोड़ गए गांव को
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बागोर (भीलवाड़ा)।

गांव की गलियां आज चुप थीं, लेकिन कानों में वही सुर गूंज रहे थे— “निर्गुणी भजन…”। यह गूंज थी उस शख्स की, जिसने 85 बरस की उम्र में भी पूरे इलाके में भक्ति का रंग घोला।

डालू राम तेली, जिन्हें लोग प्यार से डालू बा कहते थे, अब इस दुनिया में नहीं रहे।

गांव में इतना नाम कमाया कि मोहल्ला ही “डालू बा का गाणा” कहलाने लगा। उनके निधन की खबर मंगलवार रात फैली, तो सुबह तक बागोर ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी शोक की परछाई छा गई।

सुबह उनके घर के बाहर अजीब नजारा था—

शोक के बीच भजन मंडलियां डफली-मंजीरे बजाकर निर्गुणी गा रही थीं। किसी ने आंसू पोंछते हुए सुर साधा, तो किसी ने सिर झुकाकर भजनों में अपनी श्रद्धांजलि दी।

श्मशान घाट बना सवाल

उनकी अंतिम यात्रा में सैकड़ों लोग उमड़े। लेकिन सोनिया श्मशान घाट की दुर्दशा ने सबको झकझोर दिया। कटीली झाड़ियां, कीचड़, गंदगी और धूप से बचाव की कोई छाया नहीं। शव यात्रा को नदी के बहते पानी से गुजरना पड़ा और खुले आसमान के नीचे दाह संस्कार करना पड़ा।

भजनों की गूंज और श्मशान की बदहाल तस्वीर— दोनों ही दृश्य लंबे समय तक ग्रामीणों की यादों में रहेंगे।

एक स्मृति, एक सवाल छोड़ गए डालू बा

डालू बा के निधन ने गांव को न सिर्फ भक्ति से भरपूर यादें दीं बल्कि यह सवाल भी छोड़ गए कि क्या भक्ति और परंपरा निभाने वालों को विदाई देने के लिए भी हम इतने असुविधाजनक हालात में मजबूर रहेंगे?


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