धर्म ओर समाज के हित में करे संपति का सदुपयोग-मुनि अनुपम सागर

भीलवाड़ा । नवरात्र के शुभ अवसर पर सिद्धों की आराधना करने हेतु पट्टाचार्य आचार्य विशुद्धसागर महाराज के शिष्य मुनि अनुपम सागर महाराज एवं मुनि निर्मोहसागर महाराज ससंघ के सानिध्य में श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर एवं सेवा ट्रस्ट तिलकनगर के तत्वावधान में यश विहार में आयोजित तीन दिवसीय रोग शोक संकट निवारक सिद्धचक्र महामंडल विधान शनिवार को सम्पन्न हुआ। इस विधान पूजा में श्रद्धा एवं भक्ति भाव के साथ बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। सिद्धचक्र महामंडल विधान के अंतिम दिन सुबह 7.30 बजे से मंदिर में अभिषेक एवं शांतिधारा हुई। इसके बाद सुबह 8 बजे से मंगलाचरण एवं प्रवचन हुए। सुबह 10 बजे आहारचर्या के बाद दोपहर 12 बजे से विधानपूजा का आयोजन हुआ। महामण्डल विधान की पूर्णाहुति पर 1024 अर्ध्यो से जिन सहस्त्रनाम विधान सम्पन्न हुआ। इसके बाद विश्व शांति यज्ञ का आयोजन किया गया। मुनि अनुपम सागर महाराज ने प्रवचन में कहा कि सिद्धचक्र विधान सिद्ध बनने में सहायक है। ऐसी आराधना में शामिल होकर पुण्यार्जन होता है। जीवन में दान ओर त्याग के महत्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जिनबिम्ब प्रतिष्ठित करना ओर जिन मंदिर बनाने से संपति का सदुपयोग होता है। जीवन में कुल का यश चाहते है तो एक जिनबिम्ब अवश्य विराजमान कराना। इस आपकी यश कीर्ति सदा कायम रहती है। मुनिश्री ने कहा कि जीवन में धन को समाज व धर्म के लिए लगाने में ही उसकी सार्थकता है। धन को एकत्रित करने से कोई लाभ नहीं है जब तक उस कारण किसी का भला नहीं होता या जिनशासन की प्रभावना नहीं होती है। तिलकनगर मंदिर समिति अध्यक्ष दिनेश सेठिया ने विधान के समापन अवसर पर मुनिश्री एवं सकल जैन समाज, विधान में सहयोगी कार्यकर्ताओं एवं विधानाचार्य आदि का आभार जताया। मीडिया प्रभारी भागचंद पाटनी ने बताया कि विधान सम्पन्न होने पर जिनेन्द्र भगवान को भव्य जुलूस के साथ मंदिर में विराजमान किया ओर मुनि संघ को गाजे बाजे के साथ आमलियों की बारी मंदिर तक पहुंचाया गया। विधान सम्पन्न होने पर समाजजनों के लिए स्नेहभोज भी आयोजित हुआ।
