अनोखी परंपरा — यहां गधों की होती है पूजा, ‘वैशाखी नंदन’ के नाम से जानी जाती है यह परंपरा

अनोखी परंपरा — यहां गधों की होती है पूजा, ‘वैशाखी नंदन’ के नाम से जानी जाती है यह परंपरा
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भीलवाड़ा,

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे के प्रताप नगर चौक (कुम्हार मोहल्ला) में आज भी एक अनोखी परंपरा जीवित है — ‘वैशाखी नंदन पूजा’, यानी गधों की पूजा। यह परंपरा कुम्हार समाज में पीढ़ियों से चली आ रही है और हर साल दीपावली के दूसरे दिन, ठीकरा (अन्नकूट) पर्व पर बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाती है।

ग्रामवासी संजय कुम्हार बताते हैं कि पहले के दौर में जब किसानों की आजीविका का आधार बैल हुआ करते थे, तब दीपावली के बाद बैलों की पूजा करने की परंपरा थी। उसी तरह, कुम्हार समाज के लोगों ने भी अपने जीवन में अहम भूमिका निभाने वाले गधों की पूजा शुरू की — जिन्हें वे स्नेहपूर्वक ‘वैशाखी नंदन’ कहते हैं।

हमारे समाज के पंच पटेलों ने कई वर्षों पहले यह निर्णय लिया था कि जैसे किसान बैलों की पूजा करते हैं, वैसे ही हम अपने साथी पशु गधों की पूजा करेंगे। यह परंपरा आज भी जारी है, — गोपाल कुम्हार ने बताया।

परंपरा और आधुनिकता का संगम

समय के साथ खेती-बाड़ी और कुम्हारी, दोनों पेशों में मशीनों और आधुनिक साधनों का इस्तेमाल बढ़ गया है। गधों की जगह अब ट्रॉली, ट्रैक्टर और पिकअप वाहनों ने ले ली है। बावजूद इसके, कुम्हार समाज इस परंपरा को जीवित रखे हुए है।

पूजा के दिन गधों को फूल-मालाओं से सजाया जाता है, उनके सिर पर तिलक लगाकर आरती की जाती है। कई स्थानों पर गधों की झांकी भी निकाली जाती है। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह सिर्फ एक धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है।

जिले भर से उमड़ती भीड़

वैशाखी नंदन पूजा को देखने के लिए आसपास के गांवों और कस्बों से बड़ी संख्या में लोग मांडल पहुंचते हैं। बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं इस अनोखे आयोजन का आनंद उठाते हैं।

आज के जमाने में यह पूजा सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों के श्रम और पशु सहयोग के प्रति आभार का प्रतीक है,” — एक स्थानीय बुजुर्ग ने कहा।

केवल मांडल में जीवित है यह परंपरा

भीलवाड़ा जिले में वैशाखी नंदन पूजा केवल मांडल कस्बे में ही आयोजित की जाती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह न सिर्फ सामाजिक एकता का प्रतीक है, बल्कि ग्रामीण संस्कृति और लोक परंपराओं की जीवंत झलक भी है।

सांस्कृतिक धरोहर का संदेश

आधुनिक युग में जब परंपराएं धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं, ऐसे में मांडल की यह अनोखी पूजा ग्रामीण जीवन की सादगी, सम्मान और पशु प्रेम की मिसाल पेश करती है।

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