बैलगाड़ियों से मायरा भरने आए भाई,सुवालका समाज ने जीवंत की पुरानी राजस्थानी परंपरा

हमीरगढ़ अलाउद्दीन मंसूरी हमीरगढ़ में सुवालका समाज ने राजस्थानी संस्कृति और पुरानी परंपराओं को जीवंत करने का दुर्लभ उदाहरण पेश किया। बहन के मायरे के लिए एक भाई बैलगाड़ियों के काफिले के साथ रवाना हुआ। यह परंपरागत यात्रा इतनी आकर्षक रही कि पूरे रास्ते गांवों से लोग इसे देखने उमड़ पड़े।
कोजुंदा गांव से शुरू हुई यह मायरा यात्रा बैलगाड़ियों की धीमी गति, ढोल-नगाड़ों की थाप, नाचते-गाते ग्रामीणों और महिलाओं के मंगलगीतों के बीच आगे बढ़ी। कृष्ण भगवान और गौ माता की तस्वीर के साथ पूजा-अर्चना के बाद मायरा विधिवत रवाना किया गया।बैलगाड़ियों का यह जत्था माल का खेड़ा और शादी गांव से होता हुआ हमीरगढ़ के भवानीपुरा नगर पहुंचा। रास्तेभर समाज के लोगों की उमंग और पारंपरिक परिवेश ने इसे एक जीवंत सांस्कृतिक आयोजन का रूप दे दिया।समाजजनों का कहना था कि यह मायरा प्रसिद्ध नर्सी बाई मायरा की याद दिलाता है। इसमें भक्ति, संस्कृति और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिला। सुवालका समाज की यह पहल आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने और राजस्थानी विरासत को संजोकर रखने का प्रेरणादायक संदेश देती है।यह आयोजन न सिर्फ एक पारिवारिक संस्कार का प्रतीक बना, बल्कि ग्रामीण समाज के सांस्कृतिक गौरव का भी भव्य प्रदर्शन साबित हुआ।
