अरावली संरक्षण पर प्रशासनिक फैसले पर पर्यावरणविद जाजू ने जताई चिंता

भीलवाड़ा। अरावली पर्वत श्रृंखला से जुड़े हालिया प्रशासनिक निर्णय को लेकर पर्यावरणविद और INTACH भीलवाड़ा चैप्टर कन्वीनर बाबूलाल जाजू ने गंभीर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इस फैसले से प्राकृतिक संतुलन को खतरा होगा और आने वाली पीढ़ियों को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
बाबूलाल जाजू ने बताया कि अरावली करोड़ों वर्षों में बनी प्राचीन पर्वतीय श्रृंखला है, जो उत्तर भारत की हरित रक्षा कवच के रूप में काम करती है। यह क्षेत्र मरुस्थल, धूल और प्रदूषण के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इसके जंगल, जल स्रोत, वनस्पति और जीव-जंतु मिलकर एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र बनाए रखते हैं।
पर्यावरणविद ने चेताया कि प्रशासनिक फैसले से खनन गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। जैसे ही पहाड़ियां और गैपिंग क्षेत्र संरक्षण से बाहर होंगे, वहां अंधाधुंध खनन शुरू हो जाएगा। इससे भूजल स्तर घटेगा, जल संकट बढ़ेगा और क्षेत्र का प्राकृतिक स्वरूप स्थायी रूप से प्रभावित होगा।
जाजू ने कहा कि अरावली क्षेत्र कई जीव-जंतुओं और पक्षियों का प्राकृतिक आवास है। वन और वनस्पति के नष्ट होने से जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, कई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं, और असामान्य तापमान, लू और प्रदूषण आम जनजीवन के लिए खतरा बनेंगे।
पर्यावरणविद ने प्रशासन से आग्रह किया कि अरावली की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और खनन एवं अन्य गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय दृष्टि से सतर्क निर्णय लिया जाए।
