भीलवाड़ा पर संकट के बादल: पर्यावरण अनापत्ति प्रमाण पत्र के अभाव में 10 हजार से अधिक खदानें बंद होने की कगार पर!

भीलवाड़ा पर संकट के बादल: पर्यावरण अनापत्ति प्रमाण पत्र के अभाव में 10 हजार से अधिक खदानें बंद होने की कगार पर!
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भीलवाड़ा । भीलवाड़ा और पूरे प्रदेश के खनन उद्योग पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। राज्य स्तरीय एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी (सिया) से पर्यावरण अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करने की समय सीमा तेज़ी से नज़दीक आ रही है, और अगर अगले डेढ़ महीने में यह प्रमाण पत्र नहीं मिला, तो प्रदेश की 10,000 से अधिक खदानों पर ताला लग सकता है।

खनिज विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में कुल 23,978 खदानों को एनओसी की आवश्यकता है। चिंता की बात यह है कि अब तक केवल 19,000 खदान संचालकों ने ही इसके लिए आवेदन किया है, और उनमें से भी केवल 9,000 खदान मालिकों को ही सिया से एनओसी मिल पाई है।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 7 दिसंबर, 2022 को एक निर्णय दिया था। इस निर्णय के अनुसार, 15 जनवरी, 2016 से 13 सितंबर, 2018 के बीच जिला सिया द्वारा जारी किए गए 25,121 खदानों के पर्यावरण एनओसी को 7 नवंबर, 2024 तक राज्य स्तरीय सिया से फिर से जारी करवाना होगा।

हालांकि, खान विभाग ने खदान मालिकों को जागरूक करने और आवेदन करने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन केवल 19,000 खदान और क्वारी लाइसेंस धारकों ने ही आवेदन किया।

सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं मिली राहत

खनन कार्य को जारी रखने के लिए राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद एनओसी प्राप्त करने की अंतिम तिथि को 31 मार्च तक बढ़ा दिया गया। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने एक और राहत देते हुए समय सीमा को 28 जुलाई तक बढ़ा दिया।

लेकिन अब, समय सीमा समाप्त होने में कुछ ही दिन बचे हैं, और अगर इस दौरान एनओसी नहीं मिलती है, तो खनन कार्य बंद हो जाएगा। जानकारों का मानना है कि अब सुप्रीम कोर्ट से भी राहत मिलना आसान नहीं होगा।

भीलवाड़ा पर होगा सबसे ज्यादा असर

अगर खदानें बंद होती हैं, तो इसका सबसे ज्यादा असर भीलवाड़ा जैसे खनन क्षेत्रों पर पड़ेगा। यहां न केवल हजारों लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ जाएंगी, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

यह देखना होगा कि क्या राज्य सरकार और खनन विभाग इस समस्या का कोई समाधान निकाल पाते हैं या नहीं। फिलहाल, भीलवाड़ा के खदान संचालकों की निगाहें सिया और सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई हैं।

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