सर्वपितृ अमावस्या 2025: पितरों को तर्पण के साथ दी गई भावभीनी विदाई

भीलवाड़ा के साथ ही – आज देशभर में **सर्वपितृ अमावस्या** श्रद्धा के साथ मनाई गई। पितृपक्ष के अंतिम दिन, जिसे पितृ विसर्जन अमावस्या भी कहा जाता है, लाखों लोगों ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान किए। इस पावन अवसर पर सूर्यग्रहण का विशेष संयोग होने से इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया।
पितरों को विदाई: श्रद्धा और आस्था का संगम
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की अमावस्या तिथि आज रविवार को रात्रि 12:16 बजे से शुरू हुई और 22 सितंबर को प्रात: 1:23 बजे समाप्त होगी । उदय तिथि के आधार पर सर्वपितृ अमावस्या 21 सितंबर को मनाई गई। इस दिन भक्तों ने सुबह-सुबह स्नान कर, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अपने पितरों को तिल, जल, कुशा और फूलों से तर्पण अर्पित किया। जिन लोगों को अपने पूर्वजों के नाम या तिथि की जानकारी नहीं थी, उन्होंने "ॐ सर्वपितृभ्य: स्वधा नमः" मंत्र के साथ सामूहिक तर्पण किया।
देशभर में उत्साह: पवित्र नदियों पर उमड़ी भीड़
गंगा, यमुना, गोदावरी और अन्य पवित्र नदियों के घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी गई। **प्रयागराज**, **हरिद्वार**, **वाराणसी**, और **गंगा सागर** जैसे तीर्थस्थलों पर लोग तर्पण और पिंडदान के लिए एकत्र हुए। पंडितों ने बताया कि इस दिन किए गए दान-पुण्य और तर्पण से पितृदोष का निवारण होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। कई स्थानों पर ब्राह्मण भोज और गरीबों को भोजन-वस्त्र दान करने की परंपरा भी निभाई गई।
#### सूर्यग्रहण का संयोग: विशेष सावधानियां
इस वर्ष सर्वपितृ अमावस्या पर साल का अंतिम सूर्यग्रहण होने से इस दिन का धार्मिक महत्व और बढ़ गया। ज्योतिषियों के अनुसार, ग्रहण काल में पूजा-पाठ वर्जित रहा, लेकिन ग्रहण समाप्ति के बाद तर्पण का विशेष मुहूर्त प्रात: 11:50 बजे से शुरू हुआ। भक्तों ने ग्रहण के बाद स्नान कर पितरों को जल अर्पित किया और गाय, कौवों और कुत्तों को भोजन कराया।
#### प्रमुख गतिविधियां और विधियां
- **तर्पण और श्राद्ध**: भक्तों ने कुशा के आसन पर बैठकर "ॐ पितृभ्य: स्वधा नमः" मंत्र का जाप किया और जल-तिल अर्पित किए।
- **पिंडदान**: चावल, जौ और तिल से बने पिंड नदियों में विसर्जित किए गए।
- **दान-पुण्य**: गाय को हरा चारा, कौवों को खीर और गरीबों को अनाज-वस्त्र का दान किया गया।
- **विशेष पूजा**: कई परिवारों ने पीपल वृक्ष के नीचे दीप जलाकर और जल चढ़ाकर पितरों की पूजा की।
#### धार्मिक संदेश: पूर्वजों का आशीर्वाद अनमोल
पंडित रामशरण शास्त्री ने बताया, "सर्वपितृ अमावस्या पितृपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन है, जब हम अपने सभी पूर्वजों को याद करते हैं। यह दिन हमें सिखाता है कि हमारी जड़ें हमारे पितरों से जुड़ी हैं। उनके आशीर्वाद से जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि आती है।"
#### सामाजिक प्रभाव: एकता और परंपरा का प्रतीक
इस अवसर पर देशभर में सामाजिक संगठनों और मंदिरों ने सामूहिक श्राद्ध और तर्पण कार्यक्रम आयोजित किए। कई स्थानों पर पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए नदियों में प्लास्टिक विसर्जन रोकने की अपील की गई। नवरात्रि की पूर्व संध्या पर यह पर्व भक्तों में नई ऊर्जा और आध्यात्मिकता का संचार करता है।
सर्वपितृ अमावस्या के इस पावन अवसर पर सभी ने अपने पितरों को श्रद्धा के साथ विदाई दी और उनके आशीर्वाद की कामना की। यह पर्व हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत और पारिवारिक मूल्यों से जोड़े रखता है।
