आत्मा की रक्षा तप रूपी किले से हो - साध्वी कीर्ति लता
भीलवाड़ा आत्मा की रक्षा तप रूपी किले से हो - साध्वी कीर्ति लता
भारतीय संस्कृति एक प्राणवान संस्कृति रही है । इस उज्जवल संस्कृत में तीन धाराएं महत्वपूर्ण रही है जैन, बौद्ध एवं वैदिक । तीनों की प्रस्तुति इस भारत भूमि पर हुई है, पल्लवन व पुष्पम भी यही हुआ है । इन तीनों ने भारतीय जनमानस को प्रभावित भी किया और उसमें अपना स्थान भी बनाया है । उपरोक्त विचार साध्वी कीर्ति लता जी ने पर्युषण महापर्व के छठे दिन "जप दिवस" के रूप में मनाते हुए कहा । साध्वी श्री ने महापर्व के विशेष प्रवचन में भगवान महावीर के पचीसवें भव का उल्लेख करते हुए कहा आर्य संस्कृति का केंद्र बिंदु है मुक्ति, उस मुक्ति का साधन है तप । तपआराधना से आत्मा सिद्धत्व को प्राप्त होती है । जिस प्रकार नगर की रक्षा के लिए किला या कोट की जरूरत होती है, ठीक वैसे ही आत्मा की रक्षा के लिए तप रूपी किले की जरूरत होती है, क्योंकि तपस्या से ही कर्मों का क्षय होता है, आत्मा उज्जवल बनती है । आपने आगे कहा भगवान महावीर के जीव ने नंदन के भव में मुनी अवस्था में खूब तपस्या की । उसी का परिणाम है तीर्थंकर गोत्र कर्म का बंधन । उपभोक्ता वादी संस्कृति में तपस्या को एक चुनौती बताते हुए, आगे कहा तीन इंच की जीभ व नौ इंच के पेट में कितना भी डालो सब स्वाहा हो जाता है । साध्वी श्री जी ने चिमनजी स्वामी की घटना का उल्लेख करते हुए कहा अच्छी खुराक वाले अच्छी वह बड़ी तपस्या भी कर सकते हैं । मीडिया प्रभारी धर्मेन्द्र कोठारी ने बताया कि सभाध्यक्ष जसराज चोरड़िया ने भामाशाह गौतम दक, मनोज दक एवं ओम प्रकाश नौलखा का सम्मान किया । इससे पूर्व कार्यक्रम का आगाज युवक परिषद के सुमधुर गीत के संगान से हुआ साध्वी शांति लता जी ने कहा जैसे पानी में प्यास बुझाने की शक्ति होती है ठीक वैसे ही जप में भी विघ्न निवारण की विशिष्ट शक्ति होती है । इतिहास बताता है कि आचार्य मानतुंग ने भगवान ऋषभ की स्तुति की तो अड़तालिस ताले की बेड़ियां भी टूट गई शब्दों का असर शरीर के अवयवों पर भी पड़ता है । कार्यक्रम के अंतिम चरण में महासभा उपाध्यक्ष निर्मल गोखरू ने अपने विचार व्यक्त किए । सभामंत्री योगेश चंडालिया एवं तेयूप अध्यक्ष पियूष रांका ने आगामी कार्यक्रम की जानकारी दी ।