भगवान का स्वरूप शाश्वत है सत्य है- अशोक भाई

आकोला (रमेश चंद्र डाड) कोटडी सरस्वती विद्या मंदिर षमाध्यमिक विद्यालय में संस्कृति परिवार द्वारा आयोजित पांच दिवसीय सत्संग कार्यक्रम के अंतिम दिन कथा व्यास अशोक भाई ने प्रवचन देते हुए बताया है कि भगवान चित स्वरूप, ज्ञान स्वरूप, सत्य स्वरूप, सर्वव्यापी है ! कण कण में विद्यमान है ! सुख मिला तो दुख को भोगना ही पड़ेगा यह सत्य है इसको समझाते हुए एक उदाहरण से समझाया कि एक राजा संत के पास गया और संत ने मंत्र दिया कि "सुख में खुशी मत होना और दुख में दुखी मत होना" राजा ने कहा ऐसा तो होता ही नहीं है कि दुख में दुखी और सुख में सुखी न हो ! राजा के राज्य में आक्रमण हुआ तो राजा के मन में आया कि सुख चला जाएगा, धन दौलत सारा वैभव छिन जाएगा यह सब अविनाशी है एक दिन तो जाना ही है ! राम को दुख भोगना पड़ा, कृष्ण को भी दुख भोगना पड़ा, सत चित आनंद स्वरूप ही है ! शांति दुकान से खरीदने वाली वस्तु नहीं है शांति तो आत्मा के अंदर है! हमारे तीन शरीर हैं- स्थूल, सूक्ष्म, कारण शरीर इसी प्रकार तीन जीव हैं- विषयी, साधक, सिद्ध ! कथा व्यास अशोक भाई ने बताया लंका विषयों की नगरी, अयोध्या साध्य की नगरी, काशी ज्ञान की नगरी, मिथिला वैराग्य की नगरी, वृन्दावन प्रेम की नगरी है ! सनातनियों को गीता , भागवत, महाभारत, पुराणों का अध्ययन करना चाहिए ! ये इनका कर्म हैं, जो व्यक्ति इनका अध्ययन नहीं करते तो आत्मा शुद्ध पवित्र नहीं होगी! मोह अर्थात रावण मरता नहीं अगर वह अहंकार नहीं करता, कर्मरूपी मेघनाथ बांधता है! जिसमें मनुष्य को विषयों भोगो से वैराग्य मिला वहीं जगा हुआ व्यक्ति हैं ! इसमें कथा व्यास अशोक भाई ने समझाया एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और अर्थी निकल रही है उसको विष्णु- पार्वती द्वारा देखा जाता है और शिव जी उनको अपना भक्त बताते हैं तब लक्ष्मी जी कहते हैं कि ये आपके नहीं मेरे भक्त हैं ओर साबित करने के लिये ऊपर से धन , हिरे की वर्षा की तो लोगों ने अर्थी साइड में रख कर धन, हिरे इकट्ठा करने लग गये एक बच्चा अर्थी के आगे चरी लेकर चल रहा था उसको पीछे से आवाज नहीं आती है तो पीछे घूम कर देखता हूं सभी पीछे रह जाते हैं वह चरी वहीं रख देते हैं और वह भी धन दौलत इकट्ठा करने लग जाता है लक्ष्मी जी कहते हैं देखिए यह भक्त किसके हैं तब विष्णु जी बताते हैं ये लक्ष्मी जी अर्थात धन के भक्त हैं ! वर्तमान समय में मनुष्य परमात्मा की भक्ति नहीं करते निजी स्वार्थ के लिए अपने परिवार के लोगो को भी नुकसान पहुंचा देते हैं! पुण्य प्राप्ति करनी हैं तो लोगों की भलाई, गौ सेवा, प्रभु भक्ति से ही मिल सकती है बुढ़ापे में आपको समय नहीं मिल पाएगा इसलिए अभी ही अपने शरीर को सत्संग में लगाये ! कार्यक्रम में आसपास के जिलों से भक्त पधारे सैकड़ो भक्तों ने सत्संग का लाभ प्राप्त किया

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