बाबा रामदेव के भक्तों का सड़कों पर रेला: आस्था और उत्साह का अनोखा संगम

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भीलवाड़ा (हलचल)।

सड़क पर कदम रखते ही नज़र जाती है रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे भक्तों की टोलियों पर। कहीं डीजे की धुन पर झूमते युवा, कहीं तालियां बजाकर भजन गाती महिलाएं और कहीं अपने छोटे-छोटे बच्चों का हाथ थामे चलते परिवार। यह नजारा किसी साधारण मेले का नहीं, बल्कि बाबा रामदेव (रामसा पीर) के दरबार में धोक लगाने जा रहे लाखों श्रद्धालुओं का है।





भीलवाड़ा-ब्यावर मार्ग पर इन दिनों मानो आस्था का समंदर उमड़ पड़ा है। हर ओर से आती "जय रामदेव" की गूंज यात्रियों की थकान मिटा देती है। भक्तों की रेलमपेल से सड़कों पर ऐसा दृश्य है, मानो पूरी धरती एक उत्सव में डूब गई हो।





डीजे की थाप पर झूमते भक्त

यात्रा का सबसे दिलचस्प दृश्य है — डीजे पर बजते भक्ति गीत और उन पर झूमते-नाचते भक्त। महिलाएं घाघरे में घूमर करती नजर आती हैं,



तो युवा हाथों में केसरिया झंडे लहराते हुए नृत्य करते हैं। छोटे बच्चे भी ताल पर कदम मिलाते हैं। यह नजारा देखकर राहगीर भी ठहर जाते हैं और पल भर के लिए खुद को आस्था के रंग में डूबो लेते हैं

लंगर और सेवा की परंपरा

यात्रा के मार्ग पर जगह-जगह भक्तों के लिए लंगर का आयोजन किया गया है। कहीं चाय-नाश्ता, कहीं खिचड़ी-पूड़ी, तो कहीं छाछ और ठंडे पानी की व्यवस्था की गई है। यह सब स्थानीय समाजसेवियों और रामदेव भक्त मंडलों की ओर से होता है।





भीलवाड़ा के उद्योगपति से लेकर छोटे दुकानदार तक, हर कोई इस सेवा में शामिल है। कोई अपने घर का आंगन खोलकर यात्रियों को विश्राम देता है, तो कोई सड़क किनारे तंबू लगाकर रातभर का बसेरा तैयार करता है।

चांदमल जीनगर, जो परिवार सहित करीब 400 किलोमीटर की दूरी तय कर बाइक से रामदेवरा जा रहे थे, बताते हैं — “यह सिर्फ यात्रा नहीं, बल्कि हमारी परंपरा है। हम हर साल बाबा के दरबार में धोक लगाते हैं। रास्ते की थकान, धूप-बरसात सब बाबा की कृपा से सहज लगती है।”

उनके साथ गई निशा कहती हैं — “इतनी लंबी यात्रा में कभी कोई परेशानी नहीं आई। हर जगह लोग सेवा के लिए तैयार रहते हैं। यही बाबा की महिमा है।”


पश्चिमी राजस्थान का महाकुंभ

जोधपुर के मसूरिया स्थित बाबा रामदेव मंदिर से लेकर जैसलमेर के रामदेवरा (रूणीचा) तक इस यात्रा का महत्व इतना अधिक है कि इसे पश्चिमी राजस्थान का महाकुंभ कहा जाता है।

भाद्रपद शुक्ल द्वितीया (बीज) से शुरू होकर दशमी तक चलने वाले इस मेले में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। जोधपुर के मसूरिया मंदिर में महाआरती के साथ इसकी शुरुआत होती है, जहां बाबा रामदेव के गुरु बालीनाथ की समाधि भी स्थित है।


लोक आस्था और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

लोक देवता बाबा रामदेव का प्राकट्य दिवस भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। बाबा रामदेव ने समाज में समरसता, समानता और भाईचारे का संदेश दिया। वे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक माने जाते हैं। यही कारण है कि उनके भक्तों में सभी धर्मों और वर्गों के लोग शामिल होते हैं।

भक्त पैदल, ऊंट, ट्रैक्टर-ट्रॉली, बस, ट्रेन और निजी वाहनों से रामदेवरा पहुंचते हैं। सबसे अधिक महत्व पैदल यात्रा का है। भक्त मानते हैं कि पैदल यात्रा से बाबा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।


मेले में उमड़ता जनसैलाब

रामदेवरा मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक महोत्सव भी है। यहां लोकगीत, भजन संध्या, झांकी और मेले की रौनक भक्तों को आकर्षित करती है।

मसूरिया पहाड़ी पर दर्शन करने के बाद श्रद्धालु जैसलमेर के पोकरण स्थित समाधि स्थल तक पहुंचते हैं। यहां माथा टेककर वे अपनी यात्रा को पूर्ण मानते हैं।


प्रशासन की तैयारी

इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को देखते हुए पुलिस और प्रशासन भी पूरी तैयारी में है। एडिशनल एसपी सुनील के. पवार के अनुसार, “चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात है। महिला श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए कालिका टीम की विशेष तैनाती की गई है।”

एसीपी आनंद कुमार बताते हैं कि मेले को सेक्टरों में बांटा गया है, ताकि कानून-व्यवस्था पर निगरानी रखी जा सके। “हम कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी श्रद्धालु को कोई असुविधा न हो।”

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गुजरात-महाराष्ट्र से भी श्रद्धालु

इस मेले की खास बात यह है कि यह सिर्फ राजस्थान तक सीमित नहीं है। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और हरियाणा से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। कई श्रद्धालु तो हफ्तों पहले ही यात्रा शुरू कर देते हैं। रास्ते भर कीर्तन-भजन गाते हुए वे बाबा के दरबार की ओर बढ़ते हैं।


आस्था से जुड़ा उत्साह

यात्रियों की भीड़ देखकर समझा जा सकता है कि बाबा रामदेव के प्रति लोगों की श्रद्धा कितनी गहरी है। यह आस्था ही है, जो उन्हें तपती धूप, बरसते बादल और लंबी दूरी की थकान के बावजूद उत्साह से भरे रखती है।

भक्त कहते हैं — “बाबा रामदेव हमारे लिए सिर्फ देवता नहीं, बल्कि लोकजीवन की ताकत हैं। उनके दरबार में जाकर मन को शांति मिलती है।”


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