मिट्टी के दीयों की बढ़ी मांग, मेहनत रंग लाई कुम्हार परिवारों की, बाजार में लगे है ढेर

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भीलवाड़ा (प्रहलाद तेली)। दीपावली का पर्व नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक फिर से तेजी से घूमने लगे हैं। गांवों से लेकर शहर तक मिट्टी के दीये, कलश और पूजा के बर्तनों की मांग बढ़ गई है। लोग अब मोमबत्ती और झालर छोड़कर फिर से मिट्टी के दीयों की ओर लौट रहे हैं। बाजार में मिट्टी के बर्तन, खिलौनों और दीयों की अच्छी मांग देखने को मिल रही है।

कुम्हार परिवार इस बार लाखों की संख्या में दीये तैयार कर चुके हैं। इन दीयों को 70 रुपए प्रति सैकड़ा की दर से बेचने की तैयारी चल रही है। कुम्हारों का कहना है कि इस बार की दीवाली उनके लिए उम्मीदों की रोशनी लेकर आई है। दीयों की बढ़ती डिमांड को देखते हुए कुम्हार लगातार दिन-रात मेहनत कर रहे हैं ताकि बाजार की जरूरत पूरी हो सके।

मोदी सरकार की योजना के तहत मिले इलेक्ट्रॉनिक चाक कुम्हारों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। इससे अब उन्हें पहले की तरह ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती और कम समय में हजारों दीये बना पा रहे हैं। सरकार की इस पहल से कुम्हार समुदाय खुश है और खुलकर मोदी सरकार की तारीफ कर रहा है।

कुम्हारों के अनुसार कुछ साल पहले तक लोग मिट्टी के दीयों की जगह मोमबत्ती और झालर खरीदना पसंद करते थे, लेकिन अब रुझान फिर बदल गया है। पिछले तीन वर्षों से मिट्टी के दीपक की मांग लगातार बढ़ी है। इस बार भी हर घर मिट्टी के दीयों से सजने को तैयार है। कुम्हारों के चेहरे पर उत्साह साफ झलक रहा है—दीयों की रौशनी से उनके जीवन में भी उजाला लौट आया है।

दीयों की बढ़ती मांग का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब कुम्हार परिवारों की महिलाएं भी दीये बनाने में हाथ बंटा रही हैं। पूरा परिवार मिलकर दिन-रात मेहनत कर रहा है ताकि कोई घर अंधेरे में न रहे। उनका कहना है—“हम चाहते हैं कि इस दीपावली हर आंगन मिट्टी के दीयों से जगमगाए।

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