अजमेर दरगाह के 814वें उर्स का झंडा कल चढे़गा: भीलवाड़ा का गौरी परिवार निभा रहा रस्म

भीलवाड़ा। ख्वाजा साहब के 814वें उर्स का झंडा बुलंद दरवाजे पर 17 दिसंबर को शाम साढ़े चार बजे चढ़ाया जाएगा। इसके साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरुआत होगी। झंडा लेकर आने वाला भीलवाड़ा का गौरी परिवार अजमेर पहुंच गया है।
चांद रात को यानी 21 दिसम्बर को दरगाह में जन्नती दरवाजा जियारत के लिए खोला जाएगा। रजब का चांद दिखाई देने पर 21 की रात से ही उर्स की विधिवत शुरुआत हो जाएगी, अन्यथा 22 की रात से उर्स की रस्में शुरू होंगी।
भीलवाड़ा का गौरी परिवार 82 वर्षों से यह रस्म निभा रहा है। झंडा चढ़ाने की परंपरा 1928 में पेशावर के हजरत सैयद अब्दुल सत्तार बादशाह जान रहमतुल्लाह अलैह ने शुरू की थी। इसके बाद 1944 से भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी का परिवार यह रस्म अदा कर रहा है। गौरी परिवार के लाल मोहम्मद गौरी ने 1944 से 1991 तक और उनके बाद मोइनुद्दीन गौरी ने 2006 तक यह रस्म निभाई। इसके बाद फखरुद्दीन गौरी ये रस्म अदा कर रहे हैं।
महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 811वें उर्स का झंडा बुलंद दरवाजे पर शान औ शौकत से चढ़ाया जाएगा। गाजेबाजे और सूफियाना कलाम के साथ जुलूस के रूप में झंडा दरगाह लाया जाएगा। बड़े पीर की पहाड़ी से तोप से गोले दागे जाएंगे। झंडे की रस्म अदायगी के साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरुआत हो जाएगी।
उर्स के दौरान जायरीन अपनी चादरें दरगाह में चढ़ाने के लिए देहली गेट तक ढ़ोल-ताशे के साथ ले जा सकेंगे। अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट नरेन्द्र कुमार मीणा ने बताया-उर्स मेले में आने वाले जायरीन द्वारा दरगाह पर चढ़ाई जाने वाली चादरें जुलूस के साथ, ढ़ोल-ताशे एवं बैण्ड बाजे से शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए दरगाह शरीफ के मुख्य द्वार तक ले जाई जाती है। इसके कारण उर्स में आने वाले जायरीन को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। साथ ही रास्ता भी जाम हो जाता है। अतः जायरीन द्वारा चढ़ाई जाने वाली चादरें देहलीगेट के पश्चात दरगाह तक जुलूस एवं ढ़ोल-ताशे के साथ नहीं ले जाई जाएगी।
उर्स कन्वीनर हाजी सैय्यद हसन हाशमी ने बताया-हर साल जमादिल आखिर महीने की 25 तारीख को गरीब नवाज के सालाना उर्स का झंडा बुलंद दरवाजे पर चढ़ाया जाता है। गरीब नवाज की दरगाह के बुलंद दरवाजे पर सालाना उर्स का झंडा चढ़ने के साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरुआत मानी जाती है। 17 दिसंबर को अस्र की नमाज के बाद जुलूस रवाना होगा। 26 को जुमा, 27 दिसंबर को छठी व 30 दिसंबर को बडे़ कुल की रस्म होगी।
महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की मजार पर साल भर चढ़ाया जाने वाला संदल 20 दिसंबर को उतारा जाएगा। खुद्दाम-ए-ख्वाजा यह रस्म अदा करेंगे। 17 दिसंबर को सुबह आस्ताना शरीफ खोलने के साथ ही उर्स की शुरुआत हो जाएगी। रोजाना मजार शरीफ की दिन में होने वाली खिदमत मगरिब की नमाज के बाद होगी । जन्नती दरवाजा 21 को खोला जाएगा। 21 से 28 दिसंबर तक उर्स के दौरान सुबह 4 बजे आस्ताना शरीफ खुलेगा। प्रतिदिन मजार शरीफ की खिदमत होगी।
