8 वीं के बाद सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या तेजी से घट रही, नीट-जेईई की जबरन तैयारी ने बिगाड़ी पढ़ाई की दिशा

भीलवाड़ा हलचल |
प्रदेश के सरकारी स्कूलों की हालत दिन-ब-दिन चिंताजनक होती जा रही है। आठवीं के बाद विद्यार्थियों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज हो रही है। इसका सबसे बड़ा कारण बच्चों को जबरन कोटा, सीकर जैसे शहरों में भेजकर नीट व जेईई की कोचिंग कराना है।
जिले सहित प्रदेश भर के सरकारी और मॉडल स्कूलों में 11वीं और 12वीं की कक्षाएं खाली होती जा रही हैं। बच्चों की रुचि, क्षमता और मानसिक स्तर को नजरअंदाज कर केवल डॉक्टर-इंजीनियर बनाने की दौड़ ने शिक्षा की जड़ें कमजोर कर दी हैं।
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### **आंकड़ों में देखिए गिरावट का ग्राफ**
▶ **स्वामी विवेकानंद मॉडल स्कूल (कुल: 134)**
* कुल विद्यार्थी: 64,464
* 8वीं में: 9027
* 12वीं में: सिर्फ 3011
▶ **महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूल (कुल: 3737)**
* कुल विद्यार्थी: 6,76,466
* 8वीं में: 60,441
* 12वीं में: 35,788
यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे कक्षा आगे बढ़ती है, छात्रों की संख्या तेजी से गिरती है।
**क्या है वजह?**
* बच्चों को 9वीं कक्षा से ही कोचिंग सेंटरों की दौड़ में झोंक दिया जाता है।
* कोचिंग संस्थानों का 'प्री-फाउंडेशन' मॉडल बना फैशन।
* अभिभावक सोचते हैं – "अब ही से तैयारी शुरू कर दो, तभी IIT या मेडिकल मिलेगा।"
* नतीजा – बच्चे मानसिक दबाव में आ रहे, स्कूलों से कट रहे।
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### **मानसिक विकास रुक रहा, दबाव बढ़ रहा**
विशेषज्ञों के अनुसार, 9वीं-10वीं के छात्र अभी अपनी रुचि और क्षमता को पहचानने की प्रक्रिया में होते हैं। ऐसे में जब उन पर करियर थोप दिया जाता है, तो वे उलझ जाते हैं।
मनोचिकित्सक कहते हैं** –
> "हर बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बन सकता। जब उसकी इच्छा के विपरीत उस पर दबाव डाला जाता है, तो उसका मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है। कई मामलों में यह डिप्रेशन और आत्महत्या जैसी घटनाओं का कारण बन रहा है।"
शिक्षा व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी**
* विज्ञान संकाय में नामांकन लगातार गिर रहा है।
* सरकारी प्रयासों के बावजूद 11वीं-12वीं की सीटें खाली।
* सरकार ने मॉडल स्कूल और अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोले, लेकिन बच्चों की संख्या फिर भी कम।
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### **समाधान क्या हो सकता है?**
✔ बच्चों की काउंसलिंग ज़रूरी
✔ स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण विषय शिक्षण
✔ कोचिंग पर नीति नियमन
✔ रुचि आधारित करियर विकल्पों को बढ़ावा
भीलवाड़ा सहित पूरे प्रदेश में शिक्षा की दशा और दिशा दोनों बिगड़ रही हैं। जरूरत है सोच बदलने की। हर बच्चा सिर्फ प्रतियोगी परीक्षा नहीं, एक अच्छा इंसान और समाज का जिम्मेदार नागरिक भी बन सकता है — बस उसे मौका दीजिए अपनी राह खुद चुनने का।
