मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है: डॉ दर्शन लता

आसींद (सुरेन्द्र संचेती) जो कार्य करने योग्य है उस कार्य को कल के लिए टाल देना आलस्य है। जहां पर कार्य के प्रति सजगता नहीं है वह व्यक्ति दिनों दिन आलसी होता जाता है। आलसी व्यक्ति बहाने बनाता है किसी कार्य को आगे नहीं बढ़ने देता है। जीवन में आलस्य और प्रमाद का त्याग करे और जीवन को साधना में लगावे। मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है।उक्त विचार प्रवर्तिनी डॉ दर्शन लता ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।

साध्वी ने कहा कि तीर्थंकरों के पांच- पांच कल्याणक च्यवन,जन्म,दीक्षा,केवलज्ञान और मोक्ष होता है। सब जीवों को खुशी मिले उसको कल्याणक कहते है। तीर्थंकरों की अनेक महिमाएं है हम उनके द्वारा दी गई जिनवाणी को जीवन में उतारे तो हमारा जीवन आनंदमय हो जाएगा।

साध्वी ऋजु लता ने कहा कि आलस्य और प्रमाद दोनो अलग अलग है। प्रमाद के 5 रूप मद,विषय,कषाय,निद्रा, विकथा है। प्रमाद करने वाले को आत्मा के हित और अहित का बोध नहीं होता है, आत्मा के प्रति सजगता नहीं होती है। जो व्यक्ति उत्साह के साथ प्रमाद को छोड़कर काम करता है वह। सफल हो जाता है। सज्जन व्यक्ति वो होता है जो प्रमाद का त्याग करे। जीवन में टाइम मैनेजमेंट और वर्क मैनेजमेंट होना चाहिए। जिसने इसका अनुसरण कर लिया वह आगे बढ़ जाता है और अपना जीवन आनंदमय बना लेता है। श्राविकाओं के लिए बुधवार से 7 दिवसीय धार्मिक शिविर का आयोजन किया जायेगा।

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