आसक्ति से संसार का परिभ्रमण बढ़ता है: धैर्य मुनि

आसींद (सुरेन्द्र संचेती)
मानव अपनी आसक्ति के चक्र में फंसा हुआ है, आसक्ति से भव भ्रमण बढ़ता है। अनासक्त भाव से ही मानव अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। आज का मानव भंवरे की तरह अपना जीवन इस संसार के राग रंग में ही पूरा व्यतीत कर देता है। जिस प्रकार भंवरा जब फूल से रस प्राप्त करते हुए इतना आसक्त हो जाता है कि शाम होते-होते वह उस फूल में ही बंद हो जाता है ।जब कोई गजराज या अन्य प्राणी उस फूल के पौधे को नष्ट कर देता है तो वह भंवरा भी अपनी जीवन लीला समाप्त कर देता है। ठीक उसी प्रकार आज का मानव फूल रुपी संसार में भंवरा रूपी मानव बनकर अपना जीवन समाप्त कर रहा है। वह इस संसार में जन्म मरण का परिभ्रमण बढ़ाता हुआ चौरासी लाख के फेरे में घूमता रहता है। उक्त विचार नवदीक्षित संत धैर्य मुनि ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।
मुनि ने भरत चक्रवर्ती का उदाहरण देते हुए बताया कि भरत चक्रवर्ती के पास इतने अमूल्य रत्न व विशाल समृद्धि होने के बाद भी अनासक्त भाव के कारण शीश महल में चिंतन करते-करते केवल ज्ञान को प्राप्त कर लिया । हमें भी संसार में अनासक्ति भाव से जीना चाहिए तभी मानव जीवन सफल हो सकता है l
साध्वी डॉ चारित्र लता ने अंतर्गढ़ सूत्र का वाचन कर व्याख्या की। साध्वी ने कहा कि धर्म के कार्य में कभी भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। तपस्या इस लोक एवं परलोक के सुख के लिए नहीं करे, तपस्या अपने कर्मो की निर्जरा के लिए करे। जब तक चारित्र की नाव में सवार नहीं होंगे तब तक मुक्ति नहीं मिलेगी। संयम के बिना सिद्धि नहीं है एक बार तो सभी को संयम लेना ही पड़ेगा वह संयम किसी भी भव में लेना पड़ सकता है।
साध्वी ऋजु लता ने कहा कि पर्व हमारी इच्छा जागृत करते है हम इन आठ दिनों में विशिष्ठ साधना करे। हमे एजुकेटेड नहीं वेल एजुकेटेड बनना है, शिक्षा के साथ साथ विवेक, सहनशीलता,दयावान एवं धैर्यवान होना है। साधु संत किसी को भी दीक्षा देने से पूर्व उनमें गुण कितने है वो देखते है चाहे व्यक्ति के पास स्कूली शिक्षा का अभाव हो। स्थानीय संघ के मंत्री अशोक श्रीमाल ने बाहर से आने वाले श्रावक श्राविकाओं के प्रति आभार ज्ञापित किया।
