बुराइयों को बाहर फेंकने वाला व्यक्ति सम्यक दृष्टि: डॉ दर्शनलता

आसींद । संसार में सम्यक दृष्टि और मिथ्या दृष्टि दो प्रकार के लोग होते है। सम्यक दृष्टि वो होता है जो अपनी कमियों को , बुराइयों को बाहर निकाल कर फेंकता है। दूसरा मिथ्या दृष्टि वो होता है जो बुराइयों को अन्दर ग्रहण करता है। जैन धर्म में सामायिक और प्रतिक्रमण के माध्यम से इन्हें बाहर फेंका जा सकता है। आज की युवा पीढ़ी में संस्कारों की दिनों दिन कमी होती जा रही है। संस्कारों के अभाव के कारण युवा वर्ग धार्मिक रास्ते से भटक भी रहा है। जीवन में सफलता पाने के लिए संस्कारों का होना जरूरी है। आज का अधिकांश युवा वर्ग अपने माता-पिता को प्रतिदिन वंदन भी नहीं करता है तो उसमें संस्कार कहा से पैदा होंगे? उक्त विचार प्रवर्तिनी डॉ दर्शन लता ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।

साध्वी ने कहा कि सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर नवकार महामंत्र का स्मरण कर हथेली के दर्शन करे। तीन बार विधिपूर्वक वंदना करने के पश्चात माता-पिता एवं गुरुओं को वंदन करे। परिवार की खुशहाली तभी हो पाएगी जब माता पिता का आशीर्वाद मिलेगा।

साध्वी डॉ चारित्र लता ने अंतर्गढ़ सूत्र का वाचन करते हुए अर्जुन माली एवं श्रमण उपासक सुदर्शन सेठ के जीवन पर प्रकाश डाला। जैन धर्म में नौ तत्व जीव, अजीव,पुण्य,पाप, आश्रव ,संवर,निर्जरा, बंध और मोक्ष है। ये तत्व संसार से मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग बताते है, जहां जीव अपने कर्मो का नाश कर आत्मा को अपने शुद्ध,परम स्वरूप में स्थापित कर मोक्ष प्राप्त करता है। धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा मजबूत है तो शरीर में कोई आदि व्याधि प्रवेश नहीं करती है। पूज्य गुरुदेव पन्ना लाल जी महाराज सा. की मंगलवार को जन्म जयंती पर 108 दया तप करने का लक्ष्य रखा है। बुधवार को संवत्सरी महापर्व मनाया जायेगा।

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