दर्पण के समान व्यक्ति को रहना चाहिए: डॉ दर्शनलता

आसींद (सुरेन्द्र संचेती) आगम के अनुसार जैन धर्म में 12 चक्रवर्ती हुए हैं,उनमें से दो चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त और शुभम चक्रवर्ती सभी प्रकार की रिद्धि सिद्धि से पूर्ण होने के बाद भी और अधिक की इच्छा करने के कारण नरकगामी बने। अतः हमें इच्छाओं की वशीभूत न होकर संतोष धारण करना चाहिए। हमेशा दर्पण के समान व्यक्ति को रहना चाहिए, दर्पण का मतलब अभिमान न करना। दर्पण के सामने जो भी आएगा दर्पण उसे वैसा ही दिखाएगा। परंतु किसी को रूप का अभिमान, किसी को पैसे का, किसी को नाम का, किसी को पद का अहंकार होता है अतः अहंकार नहीं करना चाहिए। दर्पण जिस प्रकार किसी को पकड़ के नहीं रहता है उसी प्रकार व्यक्ति को भी किसी भी वस्तु में आशसक्ति नहीं रखनी चाहिए। उक्त विचार प्रवर्तिनी डॉ दर्शन लता ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।

साध्वी ऋजुलता ने संसार में चार प्रकार के खड्डे बताए , जो कभी भरते नहीं है पहला पेट का खड्डा, दूसरा समुद्र का खड्डा, तीसरा श्मशान का, चौथा इच्छा, मन का खड्डा। सज्जन संहिता के बारे में बताते हुए साध्वी ने कहा कि जो व्यक्ति धन न्याय और नीति से कमाया जाता है वह धन ही शुद्ध होता है अनीति से कमाया हुआ धन अपने साथ अनेकों बुरे विचार और समस्याएं लेकर के आता है। अतः हमें ईश्वर जितना दे उतने में संतोष करना चाहिए, आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है परंतु इच्छाओं की पूर्ति करना संभव नहीं है।

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