जीवन में आलोचक नहीं प्रशंसक बने: धैर्य मुनि

आसींद आसींद मंजूर |मानव जीवन में किसी की निंदा करने से जितना बच सके उतना बचने की कोशिश करे। निंदा करने में समय को बर्बाद करने के बजाय किसी अच्छे कार्य में अपना समय लगावे। किसी भी व्यक्ति के आलोचक नहीं प्रशंसक बनने की आदत डाले। किसी की भी आप निंदा करोगे तो घूम फिर कर किसी ना किसी रूप में अगले तक पहुंच जाती है। उसकी निगाह में आप सदैव के लिए उतर जाओगे। हम ऐसा कार्य करे ही नहीं, हम व्यक्ति की अच्छाइयों को देखें, निंदा करने से सदैव बचे। जो व्यक्ति जोड़ने का काम करता है उसको संघ समाज ताज पर बैठाता है। वहीं जो व्यक्ति तोड़ने का काम करता है उससे हर व्यक्ति दूरी बनाकर चलता है। उक्त विचार नवदीक्षित संत धैर्य मुनि ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।

प्रवर्तिनी डॉ दर्शन लता ने धर्मसभा में कहा कि हर प्राणी सुख चाहता है और मोक्ष जाना चाहता है, दुर्गति और नरक में कोई नहीं जाना चाहता है। जिस दिन इच्छाओं का अंत हो जायेगा उस दिन जहां पर जाना चाहते हो वहां पर चले जाओगे। इच्छाओं को कम करना अभी से शुरू कर दे जितनी इच्छा बढ़ेगी उतनी तृष्णा बढ़ती जायेगी।

साध्वी ऋजु लता ने कहा कि जैन आगम के अनुसार कुल 6 आरे है। अभी पांचवां आरा चल रहा है। छठा आरा काफी दुःख ही दुःख देने वाला आयेगा। जो समय मिल रहा है उसमें अधिक से अधिक धर्म ध्यान कर लो पुण्य कमा लो तो भविष्य की चिंता करने की जरूरत नहीं रहेगी। अपनी आत्मा के बारे में चिंतन करो, शरीर और आत्मा दोनों अलग अलग है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी जीवन को धर्ममय बनाया जा सकता है।परिवार में अच्छे संस्कार स्थापित हो यह सभी श्रावक श्राविकाओं को प्रयास करना चाहिए। संस्कार का बीज माता और पिता द्वारा ही बोया जाता है। आप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दोगे तो उनका जीवन संस्कारमय बन जाएगा। धर्म सभा में सूरत, ब्यावर, शंभुगढ़ आदि स्थानों से भक्तगण उपस्थित थे।

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