मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो तपस्या कर सकता है: धैर्य मुनि

आसींद मंजूर आसींद चातुर्मास काल में तप, त्याग, साधना का अच्छा माहौल बना रहता है। तप करने वालो का मौसम भी साथ देता है। जितनी भी भव्य आत्माएं सिद्ध हुई उन्होंने तप के मार्ग को अपनाया है। जब तक कर्मों की अन्तराय नहीं टूटती तब तक तपस्या नहीं हो सकती है। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो तपस्या कर सकता है। विजयनगर के वरिष्ठ श्रावक प्रवीण भाई संचेती ने 39 उपवास के प्रत्याख्यान आज लिए है जिसकी सभी अनुमोदना करते है। उक्त विचार नवदीक्षित संत धैर्य मुनि ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।
प्रवर्तिनी डॉ.दर्शन लता ने धर्मसभा में कहा कि हर स्थान का अपना अलग अलग प्रभाव होता है। धर्म स्थान पर आने पर मन में तप त्याग साधना के भाव जागृत होते है। विजयनगर के श्रावक प्रवीण भाई संचेती जो तप कर रहे है वह एक मिशाल है। इन्होंने अपने जीवन में अनेक तपस्याएं की है। हम सभी के लिए यह प्रेरणादायक है।
साध्वी ऋजु लता ने कहा कि जहां पर हमारी जरूरत है वहां पर हमें जाना चाहिए और उनका पूरा सहयोग करना चाहिए। जैन स्थानक में आने के पांच नियम है। सचित पदार्थ का त्याग, अचित का विवेक रखना, खुले मुंह प्रवेश नहीं करना, हाथ जोड़कर विधिपूर्वक विराजित संत ,साध्वी को वंदन करना और मन को एकाग्रचित रखकर संतो द्वारा बताई गई बातों पर अमल करना। धर्मसभा में महिला मंडल की अध्यक्षा श्री मति मंजू कर्णावट, बदनोर संघ के मंत्री हीरा लाल गोखरू ने संबोधित किया। आसींद संघ की और से तपस्वी श्रावक प्रवीण भाई संचेती का माला और शाल से स्वागत सत्कार किया गया। संघ के मंत्री अशोक कुमार श्रीमाल ने सभी आगंतुकों के प्रति आभार ज्ञापित किया।