दूसरों की कमियों को देखने वाला निरोगी नहीं रह सकता: डॉ दर्शनलता

आसींद स्वस्थ शरीर के लिए आत्मा स्वस्थ होनी चाहिए। तन, मन और भाव तीनों का कनेक्शन जुड़ा हुआ है। प्रसन्न रहना है तो पहली साधना गुणानुरागी होनी चाहिए। दूसरों में कमियों को देखने वाला इंसान कभी भी निरोगी नहीं रह सकता है। हमारा स्वभाव अच्छा है, विचार अच्छे है तो हमें सब अच्छा ही नजर आयेगा। उक्त विचार प्रवर्तिनी डॉ दर्शनलता ने महावीर भवन के प्रवचन हाल में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।

साध्वी ने कहा कि जीवन में परिवर्तन लाने के लिए जिनवाणी को सुनकर जीवन में उतारना चाहिए। हमारी दृष्टि सदेव निर्मल होनी चाहिए। हमारा दृष्टिकोण गुणानुरागी हो यह सभी का प्रयास होना चाहिए।

साध्वी ऋजु लता ने धर्मसभा में कहा कि धर्म शुद्ध और सरल भाव रखने वाले के हृदय में टिकता है। धर्म की योग्यता पाने के लिए व्यक्ति को सरल,विवेक और विनयशील बनना होगा। साधना के रास्ते पर आगे चलने के लिए हृदय में पवित्रता और सरलता आनी चाहिए। अच्छाई और सच्चाई की राह पर चलने वाला व्यक्ति सज्जन कहलाता है। आत्मा में गुणों की अभिवृद्धि होती है उसे गुणस्थान कहते है। पहला गुणस्थान मिथ्यात्व का आता है। जो भी सज्जन व्यक्ति होते है वह सदैव उत्कृष्ट भावों के साथ कर्म करते रहते है।

आसींद संघ के सानिध्य में पिछले 228 सप्ताह से लगातार हर रविवार को चहुंमुखी नवकार महामंत्र का सामूहिक जाप चल रहा है जिसमें संघ के सभी श्रावक श्राविकाएं उत्साह के साथ भाग ले रहे है। नवदीक्षित संत धैर्य मुनि, धीरज मुनि ने अधिक से अधिक नवकार महामंत्र के सामूहिक जाप में शामिल होकर अपने कर्मों का क्षय करने का आह्वान किया है।

Tags

Next Story