गोशाला की वफादार रूबी ने तोड़ा दम:विधि-विधान से किया डॉगी का अंतिम संस्कार; मेंबर्स की आंखे हुई नम

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मांडल (सोन‍िया सागर)। भीलवाड़ा जिले के खजुरी गांव में संचालित श्री नन्द गोपाल गोशाला से जुड़ी यह खबर इस बात का सुबूत है कि प्यार और वफादारी के भाव मानव-जंतुओं की सीमा नहीं मानते।

यह कहानी एक पालतू श्‍वान रूबी की है, जो पिछले नौ वर्षों से अपने मालिक के लिए न सिर्फ साथी, बल्कि परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य बनी रही। रूबी ने हर सुख-दुख में मालिक का साथ दिया, और उसकी खुशी हो या ग़म, हमेशा उसी की प्रतिध्वनि बनकर सामने आई। समुदाय के लोग बताते हैं कि रूबी ने गोशाला के बच्चों—खासकर बछड़ों—के साथ भी अनगिनत पल बिताए, खेल-खेल में उनकी सुरक्षा और देखभाल करती रही।

तरक़्क़ी-यात्रा के इस अंतरण के बावजूद, नियति ने रूबी को एक आख़िरी विदाई का अवसर दिया। जब वह दुनिया से रुखसत हुई, तो मालिक ने उसे उसी सम्मान के साथ विदा किया जो किसी करीबी पर‍िवार को दिया जाता है। अर्थी के साथ सजाकर, कंधों पर उठाकर और धैर्यपूर्वक भूमिपूजन कर उसकी शांत समाधि कर दी गई—ताकि रूबी हमेशा के लिए यादों में जिंदा रहे।

गोशाला सदस्य सत्येन्द्र दाधीच ने बताया क‍ि गांव के लोग इस अंतिम यात्रा के वास्तविक गवाह बने। आंखों से आँसू छलक उठे, पर दिलों में उस रिश्ते की गहराई की गवाही भी पुख्ता होती चली गई। यह दृश्य एक समाज के भीतर भीतरी रिश्तों की अत्यंत प्रकृत और पवित्र तस्वीर पेश करता है—जहां एक पशु का प्रेम और निष्ठा मानव-सम्बंधों के समान सम्मान पाते हैं।

खजुरी गांव से आई इस खबर की तस्वीरें दर्शाती हैं कि पवित्रता और निष्ठा की परिभाषा सीमाओं को पार कर जाती है। रूबी गो शाला में पशुधन की रक्षा करने वाली भूमिका निभाती थी और साथ ही उनके बछड़ों के साथ खेल कर मानवीय अनुभवों को समृद्ध करती थी। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि सचमुच प्यार और वफादारी के मामले में इंसान और जानवर के रिश्ते उतने ही पवित्र और अटूट हो सकते हैं जितने पिता-पुत्र जैसे पारिवारिक रिश्ते।

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