बीरा भात भरण ने आया रे

बीरा भात भरण ने आया रे
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आकोला( रमेश चंद्र डाड) सजे धजे बैलों के गलों में बंधी घंटियों की गूंजती ध्वनि और पैरो में बंधे घुंघरुओं की रुनझुन से मंगलवार को वातावरण संगीतमई हो गया उस पर ग्राम्यांचल परिवेश में सुसज्जित महिलाएं पारंपरिक गीतों को गाते हुए चार चांद लगा रही थी। मशक की धुनों पर गूंजते ग्राम्यांचली संगीत पर नृत्य करते स्त्री पुरुष पुरानी यादें ताजा कर रहे थे।

अवसर था मोटरों का खेड़ा ग्राम पंचायत क्षेत्र के फांदूं की झोपड़ियां गांव में मायरा (भात) भरने के लिए बरूंदनी ग्राम पंचायत क्षेत्र के चाड़ा की झोपड़ियां गांव से गए गुर्जर जाति के भाईयों का बहिन के घर जाने का।

पुरानी संस्कृति के अनुसार भाई अपनी बहन के ससुराल फांदू की झोंपड़िया गांव में भात यानी मायरा भरने बैलगाड़ी से पहुंचे। चाड़ा की झोपड़ियां गांव से 1 दर्जन से अधिक बैलगाड़ियों में मायरा लेकर भाई मंगलवार को बहिन के ससुराल फांदू की झोपड़ियां गांव पहुंचे। बैलगाड़ियों को खींचने वाले बैलों का विशेष श्रृंगार किया गया। बैलों के गले में घुघरू बांधे गए। परिजन व रिश्तेदार मशक के गाजे बाजे के साथ नाचते गाते चल रहे थे। सजे धजे ऊंट भी नृत्य कर रहे थे।

शादी विवाह में कुछ वर्गों में एक ओर पाश्चात्य संस्कृति का बोलबाला बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर कृषक परिवार अपनी प्राचीन परंपराओं को पुनः अपनाना शुरू कर रहे है इसे देख सभी ने सराहना की।

मोटरों का खेड़ा में अपनी बहन बरजी बाई के मायरा भरने के लिए भाई चाड़ा की झोपड़ियां के मोडा गुर्जर , भेरू गुर्जर , विजय राम गुर्जर,कैलाश गुर्जर,बजरंग गुर्जर,शंकर गुर्जर ,

सीता राम गुर्जर ,राधे श्याम गुर्जर नाचते गाते एक लाख का मायरा भरने पहुंचे। जिसमें सभी रिश्तेदारों के कपड़े, पोशाक घरेलू सामग्री भी ले गए। बहिन और उसके ससुराल वालो ने कुमकुम तिलक लगा कर गुड खिला कर मारेतियों का आत्मीय स्वागत किया।

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