आज हरतालिका तीज की धूम: धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक उत्सव का संगम

आज हरतालिका तीज की धूम: धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक उत्सव का संगम
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राजस्थान, जहां संस्कृति और परंपराओं का अनूठा मेल देखने को मिलता है, वहां हरतालिका तीज का पर्व बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। यह त्योहार, जो मुख्य रूप से सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं द्वारा मनाया जाता है, भीलवाड़ा सहित राजस्थान के विभिन्न शहरों और गांवों में धार्मिक और सांस्कृतिक रंगों से सराबोर रहेगा ।

हरतालिका तीज का महत्व

हरतालिका तीज का व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन कठोर निर्जला व्रत रखने और पूजा करने से सुहागिन महिलाओं को अपने पति की दीर्घायु और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, जबकि कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है। राजस्थान में इस व्रत का विशेष महत्व है, क्योंकि यहां की महिलाएं इसे न केवल धार्मिक अनुष्ठान के रूप में, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक एकता के प्रतीक के रूप में भी मनाती हैं।

राजस्थान में उत्सव की झलक

भीलवाड़ा जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, और बीकानेर जैसे शहरों में सुबह से ही मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। महिलाएं पारंपरिक परिधानों जैसे लहंगा-चोली और साड़ी में सजकर मंदिरों में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करेगी जबकि भीलवाड़ा में घरो में ही मिटटी क्र शिव पार्वती बनाकर पूजा करती हे जिसकी तैयारी आज की गई कल सुब्भ से पूजा होगी जो पूरी रात चलेगी , । जयपुर के प्रसिद्ध गोविंद देवजी मंदिर और उदयपुर के जगदीश मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होगा ।

भीलवाड़ा शहर ही नहीं गांवों में भी यह पर्व सामूहिक रूप से मनाया जा रहा है। महिलाएं एक साथ एकत्रित होकर हरतालिका तीज की कथा सुनती हैं और भजन-कीर्तन करती हैं। इस अवसर पर घरों को रंगोली और फूलों से सजाया जाता है, और विशेष पकवान जैसे घेवर, फीणी, और मालपुआ बनाए जाते हैं।

हरतालिका तीज की कथा और परंपरा





हरतालिका तीज की कथा माता पार्वती की भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति और तपस्या की गाथा है। प्राचीन काल में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी सखी ने उन्हें एकांत वन में ले जाकर तपस्या में सहयोग किया, जिसके कारण इस व्रत को ‘हरतालिका’ (हरित + आलिका) कहा जाता है। राजस्थान में इस कथा को सुनना और सुनाना अनिवार्य माना जाता है, क्योंकि यह भक्ति, निष्ठा और आत्मसंयम का प्रतीक है।

सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व

राजस्थान में हरतालिका तीज केवल धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि सामाजिक मेलजोल का भी अवसर है। इस दिन महिलाएं अपने ससुराल और मायके के रिश्तों को मजबूत करती हैं। सखियां और पड़ोस की महिलाएं मिलकर व्रत की तैयारियां करती हैं, जिससे सामुदायिक एकता को बढ़ावा मिलता है।आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह व्रत आत्मसंयम और भक्ति का प्रतीक है। राजस्थान के विद्वानों और पंडितों का कहना है कि यह व्रत न केवल व्यक्तिगत सुख-समृद्धि के लिए, बल्कि परिवार और समाज की शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है।

नई पीढ़ी और हरतालिका तीज

आधुनिक समय में राजस्थान की युवा पीढ़ी भी इस पर्व को उत्साह के साथ मना रही है। सोशल मीडिया पर #HartalikaTeej और #RajasthanCulture जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जहां युवा महिलाएं अपनी सज-धज और पूजा की तस्वीरें साझा कर रही हैं। एक गृहिणी, आरती ने बताया, “यह पर्व हमें हमारी संस्कृति से जोड़ता है। मैं अपनी बेटी को भी इसकी कथा सुनाती हूं ताकि वह हमारी परंपराओं को समझे।”अनीता का कहना हे KIहरतालिका तीज राजस्थान में धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यह पर्व न केवल भगवान शिव और माता पार्वती के प्रति भक्ति को दर्शाता है, बल्कि राजस्थानी संस्कृति की जीवंतता को भी उजागर करता है। जैसे-जैसे यह पर्व समाप्त होता है, यह महिलाओं को आत्मविश्वास, निष्ठा और एकता का संदेश देता है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणादायक रहेगा।

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