जनसंख्या नियंत्रण कानून' बनाकर अविलंब लागू करने की मांग, राष्ट्रीय हिन्दू फ्रंट ने प्रधानमंत्री के नाम जिला कलेक्‍टर को सौंपा ज्ञापन

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भीलवाड़ा। जनसंख्या विस्फोट एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन के कारण भारत राष्ट्र के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों के समाधान के लिए 'जनसंख्या नियंत्रण कानून' बनाकर अविलंब लागू करने के संबंध में "राष्ट्रीय हिन्दू फ्रंट' ने प्रधानमंत्री के नाम एडीएम को ज्ञापन सौंपा।

भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अब तक लगभग 78 वर्ष की अवधि में भारत ने प्रत्येक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। खाद्यान अनुपलब्धता से लेकर खाद्यान आत्मनिर्भरता एवं निर्यात तक तथा बांध बनाने से लेकर चाँद पर पहुँचने तक विकास की लंबी यात्रा हमने तय की है। परन्तु 1952 में विश्व में सर्वप्रथम परिवार नियोजन कार्यक्रम प्रारम्भ करने वाले भारत में सुरसा के मुंह की तरह बढ़कर 146 करोड़ के आँकड़े को पार कर चुकी जनसंख्या के कारण यह विकास ऊँट के मुँह में जीरे के समान साबित हो रहा है।

विश्व के मात्र 2.4% भू-भाग पर विश्व की कुल लगभग 820 करोड़ जनसंख्या के 17.8% अर्थात 146 करोड़ से अधिक आबादी का भार वहन कर रहे भारत में जनसंख्या विस्फोट से उत्पन्न संसाधन, सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय संकट तथा जनसांख्यिकीय असंतुलन के कारण पल-प्रतिपल गृहयुद्ध की आशंका बढ़ रही है।

जनसंख्या विस्फोट एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या पर कुशल एवं प्रभावी नियंत्रण के लिए 'जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग पर देश के लोगों का समर्थन जुटाने के उद्देश्य से विगत लगभग 12 वर्षों से 'राष्ट्रीय हिन्दू फ्रंट' (जनसंख्या समाधान फाउन्डेशन) द्वारा देशभर में हजारों छोटी-बड़ी सभाएं, बड़ी-बड़ी रैलियां, ज्ञापन, सेमिनार, पदयात्राएं और रथयात्राएं आयोजित की जा रही है।

देशभर में अपने प्रवासों एवं जनसंपर्क अभियानों के दौरान "राष्ट्रीय हिन्दू फ्रंट' (जनसंख्या समाधान फाउन्डेशन) के कार्यकर्ताओं ने महसूस किया है कि भारत की संस्कृत्ति एवं अखंडता को अक्षुण्ण रखने की कामना करने वाले सभी लोग जनसंख्या में वर्गीय असंतुलन को लेकर अत्यंत चिंतित हैं। सबका मानना है कि पूर्व में धार्मिक आधार पर विभाजित हो चुके देश में कुल प्रजनन दर (TFR) में दर्शायी जा रही तथाकथित गिरावट के बावजूद विभिन्न वर्गों के बीच आबादी का सामाजिक संतुलन लगातार बिगड़ते जाना एक खतरनाक स्थिति है, जो कि भविष्य में देश के ताने-बाने के लिए अत्यंत विनाशकारी साबित हो सकता है।

संगठन के हजारों कार्यकर्ताओं के अनवरत प्रयासों एवं राष्ट्र के महत्वपूर्ण लोगों से मिल रहे सहयोग के बावजूद राष्ट्रीय महत्व की इस समस्या की ओर संसद और सरकार का ध्यान आकर्षित कराने में असफल रहने पर हमने जनसांख्यिकीय असंतुलन के खतरों की भयावहता को लेकर संगठन के देशभर के कार्यकर्ताओं के माध्यम से प्राप्त आम जनमानस की धरातलीय फीडबैक तथा भारत की जनगणना एवं अन्य स्रोतों से प्राप्त विभिन्न जनसांख्यिकीय आंकड़ों के अध्ययन और विश्लेषण के आधार पर एक पुस्तिका तैयार करके उसे 16 मई 2023 को सार्वजनिक किया।

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