शिव महापुराण कथा में 12 ज्योतिर्लिंगों और 28 नरकों का वर्णन

शिव महापुराण कथा में 12 ज्योतिर्लिंगों और 28 नरकों का वर्णन
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भीलवाड़ा। सुभाषनगर स्थित श्रीराम मंदिर में चल रही श्री शिव महापुराण कथा के आठवें दिन वृंदावन से पधारे कथा व्यास परम श्रद्धेय नंदकिशोर भारद्वाज ने अपनी मधुर वाणी में 12 ज्योतिर्लिंगों की महिमा का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने बताया कि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग− गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में जूनागढ़ के पास वेरावल के समुद्र तट पर एक विशाल मंदिर में श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिवजी ने चंद्रमा को दक्ष प्रजापति के शाप से मुक्त किया था। इसी स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण ने एक शिकारी के तीर से अपने तलवे को बिंधवाया था और अपनी सांसारिक लीला समाप्त की थी। सोमनाथ जी का मंदिर अपने वैभव और समृद्धि के लिए भी विख्यात रहा है। इस मंदिर को कई बार देशी−विदेशी हमलावरों ने भी अपना निशाना बनाया। श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में जो कथा कही जाती है वह इस प्रकार है− ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 नक्षत्र कन्याओं का विवाह चंद्रमा से एक साथ ही किया था। परंतु चंद्रदेव की पसंद रोहिणी थी। रोहिणी की अन्य बहनें चंद्र देव की ओर से अनदेखी किए जाने से दुखी रहती थीं। जब दक्ष प्रजापति तक यह बात पहुंची तो उन्होंने चंद्र देव को सभी से समान व्यवहार करने के लिए समझाया। लेकिन जब चंद्र देव पर कोई असर नहीं पड़ा तो दक्ष ने चंद्र देव को क्षय रोग से ग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया। इससे चंद्र का शरीर निरंतर घटने लगा।

संसार में चांदनी फैलाने का उनका काम रुक गया। सभी जीव कष्ट उठाने लगे और दया की पुकार करने लगे। चंद्रदेव ने सभी देवताओं, महर्षियों आदि को अपनी मदद के लिए पुकारा परंतु कोई उपाय नहीं मिला। इससे असहाय देवता चंद्र को लेकर ब्रह्माजी की शरण में पहुँचे। ब्रह्माजी ने चंद्रमा को अन्य देवताओं के साथ प्रभास क्षेत्र में सरस्वती के समुद्र से मिलन स्थल पर जाकर मृत्युंजय भगवान शिव की आराधना करने को कहा। इस पर चंद्रमा ने प्रभास क्षेत्र में देवताओं के साथ जाकर छह मास तक दस करोड़ महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। चंद्र देव की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती वहां प्रकट हुए और चंद्र देव को अमरता का वरदान दिया। दक्ष के शाप का असर उन्होंने यह वरदान देकर कम कर दिया कि महीने के पंद्रह दिनों में चंद्र देव के शरीर का थोड़ा−थोड़ा क्षय घटेगा और इन पंद्रह दिनों को कृष्ण पक्ष कहा जाएगा। बाद की पंद्रह तिथियों में रोज चंद्र देव का शरीर थोड़ा−थोड़ा बढ़ते हुए पंद्रहवें दिन पूरा हो जाएगा। इन पंद्रह दिनों को शुक्ल पक्ष कहा जाएगा। इस वरदान से चंद्र देव का संकट टल गया और वह फिर से समूचे जगत पर चांदनी बरसाने लगे। इस दौरान चंद्र देव और अन्य देवताओं ने भगवान शिव से माता पार्वती समेत वहीं वास करने की प्रार्थना की, जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया और वहीं वास करने लगे।मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग− कर्नाटक के कृष्णा जिले में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में महादेव शिव का महादेवी सहित वास है। यह ज्योतिर्लिंग कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर है। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि श्री शैल के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी कथा इस प्रकार है की भगवान शिव के दोनों पुत्र श्रीगणेश और स्वामी कार्तिकेय में इस बात पर विवाद हो गया कि पहले किसका विवाह हो। इस पर पिता भगवान शिवजी और माता पार्वती ने कहा कि जो पहले धरती की परिक्रमा करके लौटेगा उसी का विवाह पहले कराया जाएगा। इस पर फुर्तीले कार्तिकेय तुरंत परिक्रमा के लिए निकल गए लेकिन श्रीगणेश चूंकि शरीर से मोटे थे, इसलिए वह उस फुर्ती से नहीं निकल पाए और इसके लिए उन्होंने नया उपाय ढूंढ निकाला। शास्त्रों के अनुसार, माता−पिता की पूजा धरती की ही परिक्रमा मानी जाती है और उसका भी वही फल मिलता है जोकि पूरी धरती की परिक्रमा से मिलता है। इस उपाय के ध्यान में आते ही श्रीगणेश जी ने माता पार्वती और पिता शिव शंकर को आसन पर बिठाकर उनकी पूजा शुरू कर दी। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव शंकर ने उनकी शादी विश्वरूप प्रजापति की दो कन्याओं रिद्धि और सिद्धि से करा दी। इधर जब तक स्वामी कार्तिकेय धरती की परिक्रमा करके माता−पिता के पास पहुंचे तब तक श्रीगणेश जी क्षेम और लाभ नाम के दो पुत्रों के पिता भी बन चुके थे। इस पर कार्तिकेय माता−पिता के पैर छूने के बाद रूठकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। माता−पिता बाद में उन्हें मनाने के लिए मल्लिका और अर्जुन के रूप में वहां गए तो उनके आने की खबर सुनते ही कार्तिकेय वहां से भागकर तीन योजन पर चले गए। क्रौंच पर्वत (श्री शैल) क्षेत्र के निवासियों के कल्याण हेतु भगवान शिव शंकर और माता पार्वती वहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में बस गए। उन्होंने श्रोताओं को इन पावन धामों के महत्व और उनसे जुड़ी कहानियों से अवगत कराया। इसके बाद, कथा में 28 प्रकार के नरकों का भी व्याख्यान किया गया, जिसमें महाराज ने धर्म और अधर्म के परिणामों को विस्तार से समझाया। आज की कथा के यजमान सुभाष नगर निवासी गोविंद और संध्या मूंदड़ा थे। कथा को सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे। इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे, जिनमें विवेक शर्मा, घनश्याम शर्मा, बहादुर सिंह, प्रकाश त्रिपाठी, कांतिभाई पटेल, कैलाश चंद्र सोमानी, प्रेम नारायण, वेद प्रकाश खंडेलवाल, ऊषा दाधीच, मंजू शर्मा, शिव सागर पानी वाले अशोक शर्मा, राघव शर्मा, पीयूष शर्मा, शांति देवी शर्मा, राम मंदिर कमेटी के अध्यक्ष शिवशेखर शर्मा, रामचंद्र मुंदडा, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, वंदना शर्मा, कमला देवी पाठक, रेनू महेश्वरी, अनीता पारीक और श्यामा शर्मा शामिल थे। यह कथा धार्मिक और आध्यात्मिक माहौल में संपन्न हुई, जिसमें सभी ने भक्तिभाव से कथा का श्रवण किया।

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