गुरला में ढुल्ली भोलावनी ग्यारस पर्व श्रद्धा और उल्लास से मनाया

सत्यनारायण सेन गुरला यह ग्यारस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि भाई-बहन के स्नेह, लोक परंपरा और धार्मिक आस्था की मिसाल है। बचपन से लेकर बुजुर्गों तक, हर आयु वर्ग के लोगों ने इस पर्व में भाग लिया। बहनों ने रंग-बिरंगे वस्त्रों पर कढ़ाई कर 'ढुल्ली' तैयार की, जो प्रेम और शुभकामना का प्रतीक मानी जाती है। दिनभर गीत गाए गए, हंसी-ठिठोली हुई और जब दुल्ली तैयार हुई, तो वह तालाब में 'भोलाई' गई- भाई की मंगलकामना के साथ।
तालाब के किनारे बहनों की परिक्रमा, पांव में पायल की छनक, लोकगीतों की मिठास और गुरला की धवल प्रकृति ने मानो स्वर्ग सा दृश्य रचा। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का दिन बन गया। स्थानीय प्रशासन की निगरानी में यह आयोजन शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। सोशल मीडिया पर #ढुल्ली_भोलावनी_ग्यारस ट्रेंड करता रहा, जिसमें गुरला की संस्कृति को पूरे देशभर से सराहना मिली।
ढुल्ली भोलावनी ग्यारस सिर्फ एक रस्म नहीं यह गुरला की आत्मा है, भाई-बहन के रिश्ते की पूजा है, और लोक संस्कृति की नींव है। यह परंपरा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी सदियों पहले थी - और आगे भी रहेगी।
गुरला के धवल सेन व श्रृष्टि सेन भाई बहन ने त्योहार मनाया