झालावाड़ हादसे के बाद भी नहीं जागा शिक्षा विभाग, स्कूल मरम्मत का बोझ भामाशाहों पर

झालावाड़ हादसे के बाद भी नहीं जागा शिक्षा विभाग, स्कूल मरम्मत का बोझ भामाशाहों पर
X

भीलवाड़ा । झालावाड़ में सरकारी स्कूल की छत गिरने से हुई दर्दनाक घटना के बाद पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा हुआ है। लेकिन इसके बावजूद शिक्षा विभाग की उदासीनता थमने का नाम नहीं ले रही। अब सिरोही जिले के जिला परियोजना कार्यालय का एक चौंकाने वाला आदेश सामने आया है, जिसमें स्कूल भवनों की मरम्मत का जिम्मा जनप्रतिनिधियों और भामाशाहों पर डाल दिया गया है।

सरकारी बजट नहीं, जनसहयोग से हो मरम्मत

इस आदेश के अनुसार, समग्र शिक्षा योजना के अंतर्गत इस वर्ष स्कूलों की मरम्मत के लिए कोई वित्तीय स्वीकृति नहीं दी गई है। ऐसे में मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे विधायक, सांसद और स्थानीय भामाशाहों से सहयोग लेकर स्कूलों की मरम्मत करवाएं। आदेश में यह भी कहा गया कि स्कूलों की मरम्मत की मांग प्रधानाचार्य द्वारा लगातार भेजी जा रही है, लेकिन यू-डाइस डाटा के आधार पर ही भारत सरकार पीएबी मीटिंग में स्वीकृति देती है।

केन्द्र से नहीं मिला बजट, राज्य सरकार भी सीमित

समग्र शिक्षा योजना के अंतर्गत केन्द्र और राज्य की 60:40 की साझेदारी से मिड-डे मील, शिक्षकों का वेतन, भवन निर्माण और मरम्मत कार्य के लिए बजट जारी किया जाता है। लेकिन इस बार केन्द्र सरकार ने पुराने भवनों की मरम्मत के लिए कोई राशि जारी नहीं की है। राज्य सरकार ने भी सीमित संसाधनों के बीच महज 2000 स्कूलों को बजट में शामिल किया है, जबकि राज्य में 6000 अन्य स्कूल अभी भी मरम्मत के इंतजार में हैं।

हादसे के बाद हरकत में आयोग

झालावाड़ हादसे के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग हरकत में आया है। आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव, कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। बावजूद इसके शिक्षा विभाग की ओर से अब तक कोई ठोस नीति या आपातकालीन बजट जारी नहीं किया गया है।

जनप्रतिनिधियों की भूमिका पर सवाल

शिक्षा विभाग का यह रुख सवालों के घेरे में है। यदि स्कूलों की मरम्मत जनप्रतिनिधियों और दानदाताओं के भरोसे ही करानी है, तो सरकार और विभाग की जिम्मेदारी क्या है? क्या बच्चों की जान की कीमत सिर्फ कागजी आदेशों और अनदेखी में ही तय होगी?

निष्कर्ष

राज्य भर में हजारों स्कूल जर्जर हालत में हैं और किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं। झालावाड़ की घटना चेतावनी है कि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो शिक्षा के मंदिर कब्रगाह में बदल सकते हैं। अब देखना यह होगा कि शिक्षा विभाग कब नींद से जागेगा।

Tags

Next Story