लुप्त हो रहे हैं परंपरागत साधन: बिजली गुल तो याद आती है बिजनी, लेकिन हम जा रहे हैं भूलते

गंगापुर(दिनेश चौहान )आधुनिकता की चकाचौंध में हम पुराने संसाधनों को भूलते जा रहे हैं जो की सेहत के लिए काफी फायदेमंद भी हुआ करते थे, वर्तमान परिदृश्य में जिस तरह से आम आदमी एसी, कूलर का उपयोग कर अनेक बीमारियों को जन्म दे रहा है... जबकि प्राचीन समय में लोग प्राकृतिक संसाधनों से मौसमी प्रकोप से बचाव करते थे ऐसा ही एक संसाधन बिजनी।

शहर के लोग भूले, लेकिन गांवो में अभी बिजनी का प्रचलन ,फोटो दिनेश चौहान

गर्मी की शुरूआत होते ही याद आता है एसी, कूलर.....लेकिन प्राकृतिक संसाधनों को हम भूलते जा रहे है..... हम बात कर रहे है बिजनी यानी हाथ पंखे की..... ग्रामीण इलाकों में आज भी गर्मी के दिनों में इसी हाथ के पंखे का उपयोग होता है... लेकिन शहरी क्षेत्रों में बहुत कम लोग की इसका इस्तेमाल करते है.... आज की जनरेशन तो बिजनी का नाम तक नहीं जानते.......एक समय था जब गर्मी के मौसम में ठंडी हवा लेने का एक मात्र सहारा हुआ करता था....



गंगापुर क्षेत्र में बागरिया जाति के लोग खजूर के पेड़ से बिजनी और झाड़ू बनाने का बड़ी संख्या में कारोबार करते हैं.... यह लोग जंगलों में घूम-घूम कर खजूर के पेड़ की टहनियों काटकर बिजनी और झाड़ू तैयार करते है..... और आसपास के जिलों सहित अन्य राज्यों में बेचने का कार्य करते हैं.... इस जाति के लोगों के लिए खजूर के पेड़ से बनी यह बिजनी ही मुख्य आजीविका के साधन है।

हाथ का पंखा और झाड़ू बेचकर चलाते हैं आजीविका, फोटो दिनेशचौहान

भागदौड़ भरी जिंदगी में हम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर ही निर्भर है.... जिससे प्राकृतिक संसाधनों दूरी और बढ़ती जा रही है..... बागरिया जाति के लिए हाथ पंखा सिर्फ आय का जरिया जरूर है ...लेकिन आम आदमी के स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है..... इन संसाधनों का उपयोग कर हम ना सिर्फ बिजली की खपत को कम कर सकते है... बल्कि इस संसाधनों को विलुप्त होने से भी बचा सकते है.....




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