मिट्टी से तैयार हुये गणपति बप्पा, घर-घर बिराजेगे, ईको फ्रेण्डली भगवन श्रीगणेश

मिट्टी से तैयार हुये गणपति बप्पा, घर-घर बिराजेगे, ईको फ्रेण्डली भगवन श्रीगणेश
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भीलवाड़ा। स्थानीय आकृति कला संस्थान द्वारा लोक कलाकारों की सहायतार्थ चलाये जाने वाले अभियान ’’सपोर्ट दी आर्टिस्ट’’ श्रृंखला के तहत इस बार भी टेराकोटा मोलेला के प्रसिद्ध मूर्तिशिल्पी नारायण कुमार द्वारा निर्मित मिट्टी के गणेश की 500 मूर्तियां उचित मूल्य पर भीलवाड़ा में वितरित की जायेगी।

सचिव कैलाश पालिया ने बताया कि जिले में इस बार मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी पूरे देश को नया संदेश देने वाली है, जिले में इस बार देश की सबसे बेहतरीन टेराकोटा मिट्टी से गणपति बप्पा तैयार किये जा रहे है। इस मिट्टी से यहां के लोक कलाकारों ने करीब 500 गणपति बप्पा की छोटी-मोटी प्रतिमायें तैयार की है, जो आने वाली गणेश चतुर्थी को घर-घर विराजमान की जायेगी। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि इस मिट्टी से बनने वाले प्रतिमाओं से पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। वहीं इस तरह की पहल भी राजस्थान में पहली बार की जा रही है। इतने बड़े स्तर पर टेराकोटा की मिट्टी से तैयार जिले के कई घरों में विराजमान होगें।

उल्लेखनीय है कि टेराकोटा मिट्टी राजस्थान की शिल्पकला में सबसे बड़ा महत्व रखती है, इस मिट्टी से कलाकार सुन्दर मूर्तियों को अपने हाथों से ही रूप देते है। इस मिट्टी की खासियत यह है कि बिना किसी रसायन के मिलावट किये यह बेहतरीन प्रतिमा आकार ले लेती है, सबसे बड़ी बात यह है कि मिट्टी से बनी प्रतिमाओं से पर्यावरण को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है। इस मिट्टी का अभी तक प्रयोग राजस्थान की पुरानी परम्पराऔ में देवी-देवताओं को दिखाते हुये हैरीटेज स्तर पर बनाई जाने वाली शिल्प कला में किया जाता रहा है।

खमनौर की पहाड़ियों के बीच तालाब से आती है मिट्टी

देश में सबसे बेहतरीन टेराकोटा मिट्टी नाथद्वारा के पास खमनौर की पहाड़ियों के बीच मौलेला के तालाब से निकाली जाती है। इस तरह की मिट्टी ओर कही भी नहीं होती है। इस मिट्टी को देश में हस्तशिल्पियो द्वारा सबसे ज्यादा उपयोग में लिया गया। हालांकि टेराकोटा मिट्टी देश के कई स्थानों पर मिलती है लेकिन इससे बांधने के लिये उसमें कुछ केमिकल मिलाने पड़ते है। टेराकोटा कला हमारी राजस्थान की परम्परागत कला है, आधुनिक युग में इसे पूरी तरह भूला दिया गया है। इस 800 साल पुरानी कला को प्रदेश की इस सबसे बड़ी पहल के साथ जिन्दा करने की एक छोटी सी कोशिश हैं।

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