बुखार और जोड़ों के दर्द में है रामबाण हरश्रृंगार

भीलवाड़ा। हरश्रृंगार को पारिजात या नाइट जैस्मिन के नाम से भी जाना जाता है. अपनी मनमोहक सुगंध और सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है. यह पौधा न केवल प्रकृति की देन है, बल्कि आयुर्वेद में औषधीय गुणों से भरपूर एक चमत्कारी पौधा भी माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हरश्रृंगार भगवान श्रीकृष्ण का अतिप्रिय पौधा है. इसके फूल और पत्तियां पूजा-पाठ में उपयोग होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी हैं.
बरसात के मौसम में डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे वायरल बुखार तेजी से फैलते हैं. ऐसे में हरश्रृंगार का काढ़ा एक प्राकृतिक और प्रभावी उपाय है. इसके पत्तों में मौजूद एंटी-वायरल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण शरीर में फैले संक्रमण को खत्म करने में सक्षम हैं. यह काढ़ा न केवल बुखार को कम करता है, बल्कि शरीर की गर्मी को निकालकर जोड़ों के दर्द को कम करने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी मदद करता है.
हरश्रृंगार का काढ़ा बनाने की विधि
हरश्रृंगार का काढ़ा तैयार करना बेहद आसान है. इसके लिए 5 से 7 ताजे हरे पत्ते लें और उन्हें अच्छी तरह धोकर मूसल में कूट लें. एक गिलास पानी में इन पत्तों को डालकर 10 मिनट तक धीमी आंच पर उबालें. जब पानी आधा रह जाए, इसे छानकर ठंडा करें और खाली पेट इसका सेवन करें. बुखार के रोगियों को यह काढ़ा तीन दिन से अधिक नहीं देना चाहिए. यह शरीर को डिटॉक्स करने, बुखार को नियंत्रित करने और इम्यूनिटी को मजबूत करने में कारगर है.
गठिया और जोड़ों के दर्द में है वरदान
हरश्रृंगार का काढ़ा गठिया जैसे पुराने रोगों में भी असरदार साबित हुआ है. जो लोग जोड़ों के दर्द, सूजन या अकड़न से परेशान हैं, वे इस काढ़े का नियमित सेवन तीन महीने तक करें. यह न केवल दर्द और सूजन को कम करता है, बल्कि हड्डियों को मजबूत बनाने में भी सहायक है. इसके नियमित उपयोग से रोगी को लंबे समय तक राहत मिल सकती है.
हरश्रृंगार का धार्मिक महत्व भी है विशेष
हरश्रृंगार का धार्मिक महत्व भी कम नहीं है. इसके फूलों की पंखुड़ियां श्रीकृष्ण की पूजा में अर्पित की जाती है. यह पौधा न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि अपने औषधीय गुणों से आमजन के स्वास्थ्य की रक्षा भी करता है. हरश्रृंगार प्रकृति का एक अनमोल उपहार है, जो यह दर्शाता है कि प्रकृति में हर रोग का समाधान मौजूद है. जरूरत है तो बस इसकी सही पहचान और उपयोग करने की.
