मानव का जीवन आपसी सहयोग एवं सेवा पर टिका है-जिनेन्द्रमुनि मसा
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गोगुन्दा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।वह जिस समाज में जीता है,उस समाज से कुछ लेता है तो कुछ देता है।दानव और मानव दोनों ही सुख चाहते है।दुःख कोई नही चाहता है,वह दानव है जो सुख देकर सुख चाहता है,वही मानव है।ऊपरोक्त विचार जिनेन्द्रमुनि मसा ने महावीर जैन गौशाला के स्थानक भवन में व्यक्त किए।मुनि ने कहा जो अपना सुख देकर दूसरे का दुःख अपनाता है,वह मानव से भी ऊपर देवत्व को जगाता है।संत ने कहा इस संसार मे सभी प्राणी सहयोग की भावभूमि पर जीवित है।मानव इस धरा का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है।वह बुद्धिजीवी है।उसमें स्वार्थ के नही,बल्कि सहयोग के भाव जागृत रहने चाहिए।दुसरो के दुःख में यदि स्नेह के दो शब्द भी कहे तो वे उनके दुःख को कम करने वाले होंगे।सहयोग के बिना समाज का काम नही चल सकता ।जैन संत ने कहा जहाँ स्वार्थ है,वहां सहयोग की नींव ही नही बन पाती तो सुख का भवन कैसे बनेगा?प्रवीण मुनि ने कहा आज सेवा और सहयोग में कमी आई है,इसलिए संयुक्त परिवार की प्रथा टूट रही है।आज तोड़ने वाले ज्यादा ,जोड़ने वाले कम है।किसी को गिरते देखकर हंसने में नही,उसे सहयोग देकर उठाने में अपनी महानता है।शक्ति होने पर भी आपके हाथ सहयोगार्थ आगे नही बढ़े तो आप अपाहिज है,पाषाणवत है।मुनि ने कहा कि किसी की करुण चीख सुनकर भी आपके हदय में सहानुभूति और संवेदना के स्वर झंकृत नही होते है तो आप मात्र मिट्टी के पुतले है।खड़े खड़े देखते ही रहे तो पशु है।रितेश मुनि ने कहा जब मानव मन में ईर्ष्या जन्म लेती है तो वह विनाश को ही आमंत्रण देती है।ईर्ष्या का परिणाम बहुत भयंकर होता है।जिसके हदय में करुणा नही वह किसी का भला सोच ही नही सकता।मुनि ने कहा मन मे परदुःखकातरता है,वही संसार के कल्याण का विचार रखता है।प्रभातमुनि ने कहा आज के प्रगतिशील युग मे भी अंध विश्वासो एवं अंधानुकरण का जो क्रम हमारे समाज मे जिस तरह से चल रहा है,इस स्थिति में आप जगकर कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नही ला पाये तो आने वाली पीढ़ी आप पर हँसेगी।