स्ट्रोक आये तो तत्काल लें डॉक्टर से उपचार, एमजीएच में 38 हजार तक का इंजेक्शन है नि:शुल्क उपलब्ध

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भीलवाड़ा (विजय/सम्पत)। अगर बीमारी की समय पर पहचान हो जाए तो उसका बेहतर इलाज संभव हो पाता है। ब्रेन स्ट्रोक में मरीज को जितना जल्द इलाज मिलेगा मरीज के लिए उतना ही फायदेमंद होगा क्योंकि मरीज के कोशिकाओं (सेल्स) को बचाना बहुत जरूरी है। इलाज में देरी मरीज के लिए नुकसानदायक साबित होती है।

भीलवाड़ा हलचल से बातचीत करते हुए महात्मा गांधी अस्पताल के न्यूरो फिजिशियन डॉ.चन्द्रजीत सिंह राणावत का कहना है कि बीमारी की अनदेखी करना घातक होता है। साढे चार घंटे से पहले मरीज का उपचार जरूरी होता है वरना लकवा हो सकता है। जब मस्तिष्क प्रभावित होता है तो व्यक्ति के लिए कई तरह की परेशानी होने लगती है। मरीज को चलने फिरने के अलावा देखने में परेशानी होने लगती है। शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है। स्वयं को ऐसा लगता है जैसे वह टेढ़ा चल रहा है। स्मरणशक्ति कम हो जाती है। मरीज कुछ बातें भूलने लगता है।

यह है लक्षण :

  • मूत्र पर नियंत्रण नहीं रह पाता
  • खाना खाने में दिक्कत आती है
  • बोलने में दिक्कत आना, और शायद मारिज की आवाज भी जा सकती है
  • स्ट्रोक किसको होने के ज्यादा चांसेस होते हैं?
  • उम्र के साथ स्टॉक के चांसेस भी बढ़ जाते हैं

डॉ. राणावत का कहना है कि परिवार में अगर किसी को पहले स्टॉक हो चुका हो तो बाकी मेंबर्स को भी स्टॉक होने के चांसेस होते हैं। उन्होंने बताया क िहार्ट अटैक आने से भी स्टॉक के चांसेस बढ़ जाते है । बीपी शुगर हाई कोलेस्ट्रॉल के मरीजों को भी स्ट्रोक होने के ज्यादा चांसेस होते हैं। धूम्रपान करना, शराब पीना या फिर ज़्यादा मात्रा में नशा करने से स्ट्रोक होने की संभावना ज़्यादा होती है।

स्ट्रोक दो तरह के होते हैं।

डॉ. राणावत ने कहा कि स्ट्रोक दो तरह के होते है एक नस का फट जाना व दूसरा नस का ब्लॉक हो जाना। नस के फट जाने के मरीज का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है । सर में प्रेशर बढ़ जाता है और उसको कंट्रोल किया जाता है। मरीज को दौरे आने शुरू हो सकते हैं या फिर कोई और वजह जिससे दिमाग की नस फट जाए तो उसका इलाज किया जाता है । उन्होंने बताया कि अगर मरीज को 4:30 घंटे के अंदर डॉक्टर को दिखाया जाए तो डॉक्टर इंजेक्शन के द्वारा नर्स की ब्लॉकेज को खोल सकता है।

अस्पताल में उपलब्ध है 38 हजार तक मुफ्त इंजेक्शन

डॉ. राणावत ने कहा कि स्ट्रोक होने पर समय पर मरीज चिकित्सक के पास पहुंच जाता है और उपचार हो जाय तो वह ठीक हो सकता है। उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी अस्पताल में 30 से 38 हजार रुपए तक के इंजेक्शन नि:शुल्क उपलब्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि भीलवाड़ा में लगभग दो दर्जन ऐसे मरीज आते है और एमजी में सात से आठ मरीज रोजना आ रहे है। इनमें से कुछ गंभीर भी होते है। उन्होंने कहा कि तार के जरिए भी स्ट्रोक खोला जा सकता है लेकिन भीलवाड़ा में केथ लेब उपलब्ध नहीं होने से ऐसे मरीजों को 24 घंटे के अन्दर सुविधा वाले स्थान पर जाने की जरूरत होती है जिससे उनकी जान बच सकती है। महात्मा गांधी अस्पताल में गंभीर मरीजों का ईलाज भी हो रहा है। न्यूरो, आईसीयू आदि की सुविधा भी जल्द उपलब्ध होगी।

बचाव :

डॉ. राणावत ने कहा कि स्ट्रोक से बचा जा सकता है अगर पूरी तरीके से इलाज करवाया जाए और समय से दवाई ली जाए। बीपी, शुगर और कोलेस्ट्रॉल की दवाई भी टाइम पर लेनी चाहिए वो भी डॉक्टर की सलाह के साथ धूम्रपान न करे, वजन कम करे, शराब कम करनी चाहिए, नमक कम करे फल और सब्जियां ज्यादा मात्रा में लेनी चाहिए और सैर करनी चाहिए। तड़के वली चीज ज्यादा मात्रा में न ले । गले की नसों के ब्लॉक होने स्टंट या सर्जरी की जा सकती है।

स्ट्रो्रोक से पहले होने वाले लक्षण

डॉ. राणावत ने बताया कि स्ट्रोक के कुछ लक्षण पहले भी आ जाते हैं पर वह कुछ सेकंड या कुछ मिन्टो के लिए ही आते हैं और फिर अपने आप ही ठीक हो जाते हैं इन लक्षणों को इग्नोर नहीं करना चाहिए इसके बाद स्टॉक होने के चांसेस बढ़ जाते हैं जल्द ही डॉक्टर से मिले ताकि टाइम पर दवाई शुरू की जा सके।

स्ट्रोक के कुछ लक्षण पहले ही आ सकते हैं, जो कुछ सेकंड या मिनटों के लिए हो सकते हैं, और फिर खुद ही ठीक हो जाते हैं। इन लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये स्ट्रोक के संकेत हो सकते हैं। संकेतों के बाद, स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, जल्दी से डॉक्टर से मिलना चाहिए, ताकि उपचार का समय पर आरंभ किया जा सके।

स्ट्रोक के इलाज के बाद मरीज को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। मरीज को समय पर दवाई लेनी चाहिए और डॉक्टर से सलाह लेकर फिजियोथैरेपी और स्पीच थेरेपी भी करवानी चाहिए। इसके अलावा, मरीज को ब्रेन एन्यूरिज़्म के संबंध में जानकारी और जागरूकता भी होनी चाहिए।

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