साइकिल चलाएंगे तो रहेंगे मस्त, बाइक से हो जायेंगे पस्त

साइकिल चलाएंगे तो रहेंगे मस्त, बाइक से हो जायेंगे पस्त
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भीलवाड़ा (हलचल)। आधुनिक जमाने में साईकिल चलाने वाले अब भी मस्त है लेकिन बाइक और कार चलाने वाले पस्त होते जा रहे है। वर्षों पहले लोग साईकिल चलाते थे तो बीमार भी कम पड़ते थे और अस्पताल के दर्शन यदा कदा ही होते थे लेकिन आज अस्पतालों में मरीजों की भीड़ बढी है। इसका कारण यही है कि लोग शारीरिक व्यायाम से दूर हो गए है। अब तो डॉक्टर भी लोगों को साईकिल या पैदल चलने की सलाह देते है ताकि वे स्वस्थ रह सके।

एक जमाना था जब भारत ही नहीं दुनिया भर में साइकिल का बोलबाला था और जिसके पास साईकिल होती थी उसे बड़ा आदमी समझा जाता था। धीरे-धीरे इनकी जगह स्कूटर-मोटरसाइकिल और अब कारों ने ले ली, मगर जगह तो ले ली पर साथ ही धरती पर इंसानों के बचने की जगह कम हो गई, कसरत के आभाव में इंसान सुविधा भोगी हो गया, परिणामस्वरुप उसे तरह-तरह की बीमारियों ने घेर लिया।

भारत में 1947 के बाद साइकिल का दौर आ गया। यह साइकिल शहर की सड़कों से लेकर गांव की पगडंडियों तक दौडऩे लगी। सरल, किफायती और पर्यावरण के लिए मुफीद साइकिल दुनिया में छाई तो इसकी महत्ता बढ़ गई। मोटर साइकिलों, कारो की बढ़ती भीड़ की चकाचौंध में बीते कुछ दशक से साइकिल बेचारी हो गई। लेकिन साइकिल जीवन से बाहर नहीं हुई और वह गाँवों से लेकर शहरों तक बहुत बड़ी आबादी की महत्वपूर्ण सवारी बनी रही। साइकिल पर दुल्हन की विदाई भी होती रही और माँ-बाप इलाज के लिए अस्पताल भी ले जाए जाते रहे। खेतों के बीच पगडंडियों पर वह घास-लकड़ी-राशन-पानी ढोने से लेकर आगे डण्डे पर बँधी नन्हीं गद्दी पर बच्चों की किलकारियाँ भी सुनाती रही। दूध के भारी कैन लादने हों तो दो डण्डों वाली मजबूत साइकिल हाजिर।

अब लगता है कि साइकिल फिर से लोगों का शौक बन रही है। कार व बाइक पर सफर करने वाले लोग भी अब साइकिल कि सवारी करने में अपनी शान समझने लगे है। बड़े-बड़े घरों में आलीशान कारों के बीच भी एक अदद साइकिल अकड़ के साथ खड़ी मिल रही है।

प्रतिदिन सुबह सैकड़ो लोग साइकिल से अपने शहरी के रक्तचाप को दुरस्त करने के लिए चलाते मिलते है। लॉक डाउन के समय लाखों लोग साइकिल पर 1000-1500 किलोमीटर की दूरी तय कर अपने घर पहुंचे थे। संकट के समय साइकिल ही उनके घर पहुंचने का एकमात्र साधन बनी। तालाबंदी के दौरान लाखों लोगों के घर पहुंचने का सबसे उपयोगी साधन बनने से लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गयी की साइकिल आज भी आम और खास लोगों का सबसे सस्ता व सुलभ साधन है। इसकी प्रासंगिकता हमेशा बरकरार रहेगी।

पर्यावरण प्रेमी बाबूलाल जाजू बताया कि उनके पास कार और बाइक है। लेकिन साइकिल से शरीर में हल्का पन रहता है। वे प्रतिदिन साइकिल से चक्कर जरुर लगाते है। उनके साथ उनके कई साथी भी प्रतिदिन साइकिलिंग करते है।

उम्रदराज एक्सरसाइज के लिए खरीद रहे साइकिल

साईकिल व्यवसायी इकबाल सिंह ने बताया क िकोरोना संक्रमण के दौर में साइकिल का भी खूब क्रेज बढ़ा है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए व्यायाम के साथ लोग नियमित साइकिल चलाकर अपनी सेहत सुधार रहे हैं। इसके चलते इधर साइकिल की बिक्री भी बढ़ी है। शहर के इन्दिरा मार्केट में अपनी दुकान पर स्कूली बच्चे आधुनिक साइकिल का प्रयोग कर रहे हैं। उम्रदराज एक्सरसाइज के लिए साइकिल खरीद रहे हैं। अब एकबार फिर साइकिल का क्रेज बढ़ा है। 60 से 70 प्रतिशत रेंजर साइकिल स्कूली बच्चों की पसंद है। आधुनिक साईकिल की कीमत 7 हजार से शुरू होती है। पुरानी साईकिलें तो बहुत की कम देखने को मिलती है। लोग हल्की लेकिन महंगी साईकिलें पसंद कर रहे है।

डॉ. नरेश खण्डलेवाल से इस संबंध में बातचीत की तो उन्होंने




कहा कि शारीरिक व्यायाम नहीं होने के कारण लोगों में तरह तरह की बीमारियां बढ रही है। उन्होंने सलाह दी कि शारीरिक व्यायाम जरूरी है और साईकिल इसका इसका अच्छा साधन है। साईकिल चलाने से कई बीमारियां दूर रहती है और तन, मन स्वस्थ रहता है।

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