औद्योगिक इकाइयों द्वारा छोड़ा जा रहा केमिकल युक्त काला पानी, बंजर हो गये खेत, बर्बाद हो गये किसान, जिम्मेदार मूकदर्शक

औद्योगिक इकाइयों द्वारा छोड़ा जा रहा केमिकल युक्त काला पानी, बंजर हो गये खेत, बर्बाद हो गये किसान, जिम्मेदार मूकदर्शक

भीलवाड़ा (प्रहलाद तेली) प्रचण्ड गर्मी अधिकांश नदी नाले छोटे-बड़े तालाब एनीकट आदि भले ही सूख कर मैदानों में तब्दील हो गये हो परन्तु बिना बरसात के शहर के चित्तौड़ मार्ग स्थित मंडपिया व गुवारड़ी नाले में रसायनयुक्त पानी चौबीसों घंटे बहते देखे जा सकते है। गर्मी में प्यासे पशु इस पानी को पीकर बीमार हो रहे है और कई तो मर चुके है। वहीं इन नालों के आस पास के खेतों में फसल भी नहीं हो पाती है जिससे किसान बर्बाद हो चले है। यह काले पानी की समस्या आज की नहीं बल्कि बरसों हो गए है पर प्रशासन, नेता और प्रदूषण नियंत्रण मण्डल काला पानी छोडऩे वालों पर कार्रवाई नहीं करता है।

गुवारड़ी, मण्डपिया व आटूण गांव के नालों में औद्योगिक इकाइयों द्वारा चोरी छुपे छोड़ा जा रहा प्रदूषित काला पानी सीधे बनास नदी में समा कर पानी को प्रदूषित कर रहा है। यही नहीं बीते लम्बे समय से चल रही इस कारगुजारी से बनास नदी के किनारे बसे दर्जनों गांवों-खेड़ों में जहां भूजल स्तर प्रदूषित होने से खेतों की जमीनें अनुपयोगी हो रही है। वहीं लोगों के सामने पेयजल संकट चुनौती बना हुआ है।

भीलवाड़ा हलचल टीम द्वारा जब इन नालों की हकीकत परखी तो इनमें कई जगह नालों में काले पानी की आवक होती नजर आयी। उधर आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि औद्योगिक इकाइयों द्वारा चोरी छिपे रात के अंधेरे में इकाइयों का प्रदूषित पानी इन नालों में छोड़ दिया जाता है जो बहता हुआ गुवारड़ी व मण्डपिया नालों में जमा होता है तथा बाद में बनास नदी तक पहुंच जाता है। ग्रामीणों ने प्रदुषण नियंत्रण मंड़ल के अधिकारियों पर मिली भगत का आरोप लगाते हुए कहा कि कई बार अवगत कराने के बाद भी कोई कार्यवाही नही होने से इकाइयां प्रदूषित काले पानी को छोडऩे से बाज नहीं आ रही है।

गौरतलब है कि जिले में औद्योगिक विकास के साथ साथ बीते लम्बे समय से गहराती काले पानी की समस्या से कोठारी एवं बनास नदी के समीप बसे दर्जनों गांवों के वाशिन्दों को तमाम कोशिशों के बावजूद राहत नहीं मिल पा रही है। जबकि शहर में सैकड़ों औद्योगिक इकाइयां संचालित है जहां वायु और जल प्रदूषण की शिकायतें सामान्य हो चुकी है। इनमें खासकर प्रोसेस हाउसों द्वारा काला पानी छोड़े जाने की शिकायतें सर्वाधिक है।

उधर राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के जिम्मेदारों द्वारा पानी के नमूने लेकर जांच के लिये भिजवा अपने दायित्वों की इतिश्री जरूर कर ली जाती है परन्तु अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाये जाने से जहां समस्या जस की तस बनी हुई है और इसी के चलते इकाई प्रबंधनों के हौसले बुलंदी पर है।

पशु चिकित्सक डॉ. तरूण गौड़ का कहना है कि इस प्रदूषित काले पानी से आस पास के खेतों की जमीन बंजर हो रही है और इसका प्रभाव खेती पर पड़ रहा है। वहीं आस पास के कुओं का पानी भी पीने लायक नहीं है और इसका सीधा प्रभाव लोगों को बीमारियों से झेलना पड़ रहा है। दूषित पानी से पशुओं पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है और वह बहुत ही नुकसानदायक है।

वहीं संगम विश्वविद्यालय की डॉ. निरमा धाकड़ का कहना है कि इस काले पानी से जमीन बंजड़ होती जा रही है । मिट्टी खराब हो रही है जिससे खेती में पैदावार प्रभावित हो रही है और खेती को नुकसान हो रहा है।

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