भीलवाड़ा में लोकआस्था का महासागर : छठ महापर्व का तीसरा दिन, आज अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य

भीलवाड़ा हलचल।
आज भीलवाड़ा में लोकआस्था का सबसे बड़ा पर्व छठ महापर्व अपने तीसरे दिन पर है। घाटों, सरोवरों और जलाशयों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की चहल-पहल देखने को मिली। शाम को व्रती महिलाएं अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करेंगी, जबकि मंगलवार सुबह उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ यह महान पर्व संपन्न होगा।
यह महापर्व न केवल सूर्योपासना का प्रतीक है बल्कि शुद्धता, श्रद्धा और संयम की मिसाल भी है। छठ एकमात्र ऐसा व्रत है जिसमें डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है — और यही इसे विशेष बनाती है।
☀️ अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य देव को दो बार अर्घ्य दिया जाता है —
पहला सांध्यकाल में अस्त होते सूर्य को और दूसरा उषाकाल में उगते सूर्य को।
सुबह सूर्य की आराधना से स्वास्थ्य लाभ होता है।
दोपहर की आराधना से यश और प्रतिष्ठा मिलती है।
शाम की पूजा से जीवन में संपन्नता आती है।
मान्यता है कि सांध्यकाल में सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं। इसलिए प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से तुरंत फल की प्राप्ति होती है।
🌼 इस तरह दें सूर्य को अर्घ्य
व्रती महिलाएं बांस की बड़ी टोकरी या पीतल के सूप में प्रसाद सजाती हैं —
जिसमें चावल, सिंदूर, गन्ना, हल्दी, शकरकंदी, फल, सुपारी, ठेकुआ, मालपुआ, खीर, पूरी और मिठाइयाँ रखी जाती हैं।
इसके साथ दीपक जलाकर तांबे के लौटे में जल भरकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
अर्घ्य के समय ये मंत्र उच्चारित किया जाता है —
"ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकंपया माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकरः।।"
अर्घ्य के बाद श्रद्धालु जल में तीन परिक्रमा कर पूजा संपन्न करते हैं।
🙏 कौन लोग दें डूबते सूर्य को अर्घ्य
ज्योतिष और लोकमान्यता के अनुसार,
अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देना विशेष रूप से लाभकारी होता है उन लोगों के लिए —
जो मुकदमों या विवादों में उलझे हों,
जिनके सरकारी कार्य अटके हों,
जिनकी दृष्टि कमजोर हो रही हो,
जिन्हें पेट से संबंधित रोग हों,
या जो विद्यार्थी बार-बार असफल हो रहे हों।
🌅 छठ के अंतिम दिन का महत्व
छठ के चौथे दिन सुबह के समय अरुण वेला में सूर्य की पत्नी ऊषा को अर्घ्य दिया जाता है।
इस अर्घ्य के साथ व्रत का समापन होता है। महिलाएं जल ग्रहण कर नींबू पानी पीकर व्रत खोलती हैं, और फिर प्रसाद का वितरण किया जाता है।
मान्यता है कि केवल अंतिम अर्घ्य देने से भी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
⚠️ व्रत समापन के नियम और सावधानियां
व्रत का समापन नींबू पानी से करें, भारी भोजन न लें।
नदी या सरोवर के जल को गंदा न करें।
अंतिम अर्घ्य के बाद सभी में प्रसाद का वितरण करें।
अपने आस-पास सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
🌞 बिना व्रत रखे सूर्य की कृपा कैसे पाएं
जो लोग स्वयं व्रत नहीं रख पाते, वे भी सूर्य की कृपा प्राप्त कर सकते हैं —
व्रतधारियों की सेवा करें,
गरीबों को ठेकुआ और प्रसाद बांटें,
घर में सफाई, सात्विकता और संयम रखें,
और दोनों अर्घ्य के समय सूर्य को जल अर्पित कर प्रणाम करें।
भीलवाड़ा में छठ की रौनक
शहर में पुर रोड स्थित वाटर वर्कर्स टैंक, पटेलनगर मानसरोवर झील, नेहरू गार्डन धांधोलाई तालाब, हरणी महादेव तालाब, बापूनगर महादेवी पार्क, पटेलनगर विस्तार तालाब और सीएस आजादनगर स्थित घरोंदा सहित विभिन्न घाटों पर श्रद्धालु सूर्य अर्घ्य देंगे।सूर्यास्त के समय पूरा घाट “जय छठी मइया” के जयकारों से गूंज उठेगा।
50 हजार से अधिक पूर्वांचल वासी मनाएंगे पर्व
भीलवाड़ा शहर और जिले में करीब 50 हजार से अधिक पूर्वांचल वासी कपड़ा उद्योग, माइनिंग और अन्य क्षेत्रों में कार्यरत हैं। सभी छठ घाटों पर सुरक्षा, साफ-सफाई और प्रकाश की विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं।
